नई दिल्ली, ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अपने प्रचार अभियान का आधिकारिक आगाज कर दिया है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने सोमवार को जबलपुर के गौरीघाट पहुंचीं और नर्मदा तट पर विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की. प्रियंका गांधी ने नर्मदा तट पर पूजा अर्चना के बाद जबलपुर में जनसभा को संबोधित किया.
प्रियंका गांधी ने जनसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनकी सरकार और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर जमकर हमला बोला. प्रियंका गांधी की जनसभा और उनका सरकार पर, सत्ताधारी पार्टी पर बरसना स्वाभाविक भी है और संभावित भी. लेकिन कुछ बातें ऐसी भी रहीं जिसमें कांग्रेस की रणनीति, मध्य प्रदेश में पार्टी की चुनावी उम्मीद और भविष्य की सियासत से जुड़े संकेत भी नजर आ रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक का फॉर्मूला
कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में चुनाव अभियान का आगाज भी उसी अंदाज में किया, जिस तरह से पार्टी ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में किया था. राज्य अलग, क्षेत्र अलग लेकिन चुनाव अभियान की शुरुआत का पैटर्न एक. हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में भी कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान का आगाज प्रियंका गांधी ने ही किया था. मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस उसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ती दिख रही है.
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के समय राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त थे. राहुल गांधी की व्यस्तता के कारण कांग्रेस ने प्रचार अभियान का आगाज करने के लिए प्रियंका गांधी को भेजा था. वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर श्रीराम त्रिपाठी कहते हैं कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के कारण प्रचार अभियान को लेकर अगर-मगर के फेर में फंसी कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को आगे किया. प्रियंका गांधी ने मां शूलिनी देवी मंदिर में पूजा पाठ के बाद सोलन में परिवर्तन प्रतिज्ञा रैली को संबोधित किया था.
उन्होंने आगे कहा कि मजबूरी में किया गया ये प्रयोग इतना सफल रहा कि कांग्रेस को चुनाव के लिए एक अलग तरह की रणनीति मिल गई. अब तो पार्टी ने इसे पैटर्न ही बना लिया है. पर्वतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के चुनाव में सफल रहे इस फॉर्मूले का प्रयोग कांग्रेस ने दक्षिण के राज्य कर्नाटक में भी किया. हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में भी कांग्रेस पार्टी चुनाव जीतकर सत्ता में वापसी करने में सफल रही.
जीत तक पहुंचाएगा पूजा-गारंटी का मेल?
डॉक्टर श्रीराम त्रिपाठी ने कहा कि हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के चुनाव अभियान की शुरुआत पर बात करें तो चेहरा एक था- प्रियंका गांधी. लेकिन बस चेहरा ही नहीं, राजनीतिक बयानबाजी, सरकार की आलोचना और विपक्ष के हमले को छोड़ दें तो दो समानताएं और थीं. एक था पूजा पाठ और दूसरा था गारंटी. दोनों ही राज्यों में चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए प्रियंका गांधी ने गारंटियों का ऐलान किया था और इनकी संख्या भी समान थी- पांच. प्रियंका गांधी ने मध्य प्रदेश में भी पूजा-पाठ से चुनाव अभियान का आगाज किया और पांच गारंटी का ही ऐलान किया.
उन्होंने ये भी कहा कि आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर प्रियंका गांधी इस बार के मध्य प्रदेश चुनाव में राहुल गांधी की तुलना में अधिक रैलियां करती नजर आएं. डॉक्टर त्रिपाठी कहते हैं कि पिछली बार चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी कई मंदिरों में गए और पूजा-अर्चना की. इस बार प्रियंका गांधी ने चुनाव अभियान की शुरुआत ही पूजा अर्चना के साथ कर एक तरह से ये बता दिया कि पार्टी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर ही चलने वाली है.
राहुल से कैसे अलग है प्रियंका की रणनीति
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, दोनों की राजनीति करने का तरीका अलग है. मध्य प्रदेश के पत्रकार अमर श्रीवास्तव कहते हैं कि हो सकता है कि ये कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा हो, लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के चुनाव प्रचार के तरीके में अंतर नजर आता है. वे कहते हैं कि राहुल गांधी के रडार पर जहां पीएम मोदी, बीजेपी, सावरकर और आरएसएस होते हैं तो वहीं प्रियंका की कोशिश अपने संबोधन को स्थानीय समस्याओं, जनता से जुड़े मुद्दों और लोकल लीडरशिप पर केंद्रित रहने की होती है. अमर श्रीवास्तव कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में प्रियंका की रणनीति इसीलिए सफल भी रही.
प्रियंका में इंदिरा की तलाश कर रही कांग्रेस?
कांग्रेस के समर्थक प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी की छवि तलाश करते हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी नाव से गंगा यात्रा पर निकली थीं. इस यात्रा के दौरान मिर्जापुर में प्रियंका गांधी ने कहा था कि लोग उनमें उनकी दादी इंदिरा गांधी का अक्स इसलिए देखते हैं क्योंकि लोग अब भी पूर्व प्रधानमंत्री को याद करते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के किए काम याद करते हैं.
क्या सबसे खराब दौर से गुजर रही कांग्रेस पार्टी भी प्रियंका गांधी में इंदिरा की, तारणहार की छवि तलाश रही है? कुछ साल पहले तक जब कांग्रेस अभी की तुलना में मजबूत हुआ करती थी, प्रियंका गांधी तब सियासत से दूर नजर आती थीं. रायबरेली में सोनिया गांधी के चुनाव अभियान की कमान संभालती नजर आने वाली प्रियंका गांधी हाल के कुछ वर्षों में अग्रिम मोर्चे से लीड करती नजर आ रही हैं.
प्रियंका गांधी को बड़ी जिम्मेदारी देने की तैयारी
कर्नाटक चुनाव में जीत के बाद ये चर्चा तो है कि प्रियंका गांधी को बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने की तैयारी है. लेकिन वह जिम्मेदारी क्या होगी, इसे लेकर अभी कोई जानकारी नहीं मिल सकी है. कहा ये भी जा रहा है कि प्रियंका गांधी के पास यूपी का प्रभार है. उनको इस जिम्मेदारी से मुक्त किया जा सकता है जिससे वो अपना ध्यान दूसरे राज्यों पर, चुनाव प्रचार पर केंद्रित कर सकें.
राहुल नहीं लड़े आम चुनाव तो क्या प्रियंका देंगी नेतृत्व?
राहुल गांधी को 2019 के लोकसभा चुनाव के समय मोदी सरनेम को लेकर टिप्पणी के मामले में गुजरात के सूरत की अदालत ने दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई थी. इसके बाद राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. राहुल गांधी अयोग्यता से संबंधित नियमों के मुताबिक छह साल तक चुनाव भी नहीं लड़ सकते. ऐसे में क्या कांग्रेस हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक चुनाव में पार्टी के लिए ‘लकी फेस’ बनकर उभरी प्रियंका गांधी को लोकसभा चुनाव में भी आगे करेगी?
2018 चुनाव का परिणाम कैसा रहा था
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 41 फीसदी वोट शेयर के साथ 114 सीटें मिली थीं. 230 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी 116 सीट के जादुई आंकड़े से दो सीट पीछे रह गई थी. बीजेपी को कांग्रेस से कुछ ज्यादा वोट मिले थे लेकिन पार्टी 109 सीटें जीत सकी थी. सपा को एक और बसपा को दो सीटों पर जीत मिली थी. चार निर्दलीय चुनाव जीते थे. कांग्रेस ने निर्दलीय और अन्य के समर्थन से कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई थी जो ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों की बगावत के कारण 15 महीने में ही गिर गई थी.