भोपाल।  लव जिहाद, धर्मांतरण जैसे विषयों की आग कभी भी भभक जाती है। ऐसा ही कुछ मध्य प्रदेश में भी हुआ। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आए दिन मंच से कहते नजर आते हैं कि मैं किसी भी कीमत पर एमपी की धरती पर लव-जिहाद का खेल चलने नहीं दूंगा। जरूरत पड़ी तो लव जिहाद के खिलाफ कड़ा कानून भी बनाएंगे। मध्य प्रदेश में पहले ही धर्मांतरण को लेकर कानून ‘मप्र धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021’ के क्रियान्वयन के लिए ‘मप्र धार्मिक स्वतंत्रता नियम 2022’ प्रभावशील है। इसके बाद भी मुख्यमंत्री का यह बयान बार-बार क्यों सामने आता है? क्या यह बयान महज चुनावी जुमला है या सरकार वाकई धर्मांतरण को लेकर चिंतित है? राजनीतिक और कानूनी जानकार शिवराज के लव जिहाद वाले बयान को महज राजनीतिक भाषा तक सीमित मानते हैं।

वहीं, इस कानून के एक प्रावधान को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट अवैधानिक करार दिया है। अब प्रदेश सरकार हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रही है। साल 2020 में कोविड-19 के कारण परिस्थितियां सरकार के अनुकूल नहीं थीं। 28 दिसंबर 2020 से प्रस्तावित रहे प्रदेश विधानसभा के तीन दिवसीय शीतकालीन सत्र स्थगित हो गया था। ऐसे में लव जिहाद के विरोध में लाया जा रहा विधेयक पेश नहीं किया जा सका था।

अध्यादेश का लिया सहारा
कोविड काल में ही प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल ने कथित ‘लव जिहाद’ के खिलाफ सख्त कानून बनाने के लिए 26 दिसंबर 2020 को ‘मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक-2020’ को मंजूरी दी गई थी। इसके बाद 29 दिसंबर को कैबिनेट की बैठक में मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश-2020 को मंजूरी दे दी गई थी। इसके तत्काल बाद यह प्रस्ताव तत्कालीन राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के पास गया। 9 जनवरी 2021 को राज्यपाल ने अध्यादेश को मंजूरी दे दी। इसके बाद इस अध्यादेश को कानून बनते-बनते करीब एक साल का समय लग गया।

कब पारित हुआ विधेयक
08 मार्च 2021 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन मध्य प्रदेश विधानसभा में ‘मध्य प्रदेश में धर्म स्वतंत्रता विधेयक 2021’ पारित हो गया। इसके बाद यह राज्यपाल को भेजा गया। उनकी स्वीकृति के बाद 16 दिसंबर 2022 को ‘मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता नियम’ (MP Freedom Religion Rules) गजट में प्रकाशित हो गया। इसने कानून का रूप ले लिया।

गंभीर सजा का प्रावधान
नए कानून के लागू होने के बाद 1968 का मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्र अधिनियम खत्म हो गया है। नए कानून में कुल 19 प्रावधान हैं। यह कानून देश के दूसरे कानूनों से सख्ता है। अगर कोई प्रलोभन, धमकी, कपट, षड़यंत्र से या धर्म छिपाकर विवाह करेगा तो वह विवाह शून्य माना जाएगा। अधिकतम 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान भी किया गया है। महिला, नाबालिग, SC-ST के धर्म परिवर्तन किए जाने पर कम से कम 2 साल और अधिकतम 10 साल की सजा और 50 हजार का जुर्माना होगा। इसमें धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति के माता-पिता, कानूनी अभिभावक या संरक्षक और भाई-बहन शिकायत दर्ज करा सकते हैं। पीड़ित महिला कानून के तहत रखरखाव भत्ता पाने की हकदार होगी। ऐसी शादियों से पैदा हुए बच्चे पिता की संपत्ति के हकदार होंगे।

60 दिन पहले करना होगा आवेदन
अगर कोई धर्मांतरण कराना चाहता है तो इच्छुक लोगों को 60 दिन पहले जिला प्रशासन के पास आवेदन करना होगा। कोई धर्माचार्य या कोई व्यक्ति जो धर्म-संपरिवर्तन का आयोजन करना चाहता है, उस भी यह प्रक्रिया अपनानी होगी। कलेक्टर उस आवेदन की समीक्षा करेगा, सबकुछ सही पाये जाने के बाद ही कलेक्टर धर्मांतरण की अनुमति देगा। धर्मांतरण संबंधी जो भी जानकारी कलेक्टर के पास आएगी, वह हर महीने की 10 तारीख को एक रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार को भेजेंगे। इसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

कानून के विरोध में कोर्ट पहुंचे नागरिक
कानून के विरोध में कुछ नागरिकों ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई। लोगों ने याचिका में कहा है कि इस एमपी फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट (एमपीएफआरए) ने नागरिकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अधिकारियों को बेलगाम और मनमानी शक्तियां दी हैं। कानून किसी भी धर्म का पालन करने और जाति और धर्म की परवाह किए बिना अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के नागरिकों के मौलिक अधिकारों में बाधा डालता है। नागरिक को अपने धर्म का खुलासा करने या किसी अन्य धर्म को अपनाने के अपने इरादे का खुलासा करने की कोई बाध्यता नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कहा कि जब तक मामले की सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक सरकार को कानून के तहत व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने से रोका जाए।

कोर्ट ने क्या कहा?
14 नंवबर 2022 को हाई कोर्ट के जस्टिस सुजॉय पॉल और पीसी गुप्ता की एक खंडपीठ ने कहा कि एमपी फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट (एमपीएफआरए) कानून की धारा 10 धार्मिक रूपांतरण चाहने वाले नागरिक को पहले से सूचना देने के लिए अनिवार्य बनाती है, हमारी राय में यह असंवैधानिक है। एक व्यक्ति को अभिव्यक्ति के रूप को तय करने का मौलिक अधिकार है जिसमें चुप रहने का अधिकार भी शामिल है। कोर्ट ने जिला कलेक्टर की इजाजत के बगैर अंतर धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों पर मुकदमा चलाने से राज्य सरकार को रोक दिया है।

शीर्ष कोर्ट पहुंची मध्य प्रदेश सरकार

हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने मप्र हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा कि अवैध धर्मांतरण के लिए शादियां की जा रही हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धर्मांतरण के सभी मामलों को अवैध नहीं माना जा सकता। अगली सुनवाई 7 फरवरी 2023 को होगी। एक अन्य मामले में सुनवाई करते हुए 14 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि जबरन धर्म परिवर्तन बहुत ही गंभीर मुद्दा है। यह देश की सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकता है। इसके बाद अदालत ने केंद्र से इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने को भी कहा था। मध्य प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचाल, कर्नाटक व हरियाणा में धर्मांतरण कानून बना हुआ है।