भोपाल। मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने एक बार फिर शराब के मुद्दे पर राज्य सरकार को घेरा है। मंगलवार को उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से ‘सेवक’ की भूमिका से निकलकर ‘प्रशासक’ बनने की अपील की है। सवाल है कि अपनी ही पार्टी के खिलाफ भारती का रुख इतना सख्त क्यों है? साथ ही पार्टी पर इसका क्या असर पड़ सकता है।

मंगलवार को भारती ने कहा, ‘मुख्यमंत्री ने मुझसे कहा है कि वह 31 जनवरी को नई शराब नीति का ऐलान करेंगे। मैं नई शराब नीति के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करूंगी और एक दिन बाद शराब की दुकानों में गौशालाएं खोल दूंगा। मैं सीएम से अपील करती हूं कि ‘सेवक’ की भूमिका से बाहर निकलकर ‘प्रशासक’ बनें।’ उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र में अगर बुरे और बहुत बुरे में चुनना हो, तो लोग बुरा चुनते हैं और बुरे सरकार बनाते हैं। चुनाव जीतना और सरकार में रहना नहीं, बल्कि स्वस्थ समाज, महिलाओं को सुरक्षा, बच्चों के सुनहरे भविष्य को सुनिश्चित करना बड़ी बात है।’

लोधी मतदाताओं से कर चुकी हैं ये अपील
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुए कार्यक्रम में भी भारत लोधी मतदाताओं से भी वोट देने से पहले अपने हितों को देखने की अपील कर चुकी हैं। उन्होंने कहा था, ‘मैं सभी से भाजपा को वोट देने के लिए कहूंगी, क्योंकि पार्टी की वफादार सैनिक हूं। लेकिन मैं आपसे पार्टी के वफादार सैनिक नहीं होने की अपील करती हूं।’

MP की राजनीति में कितनी मजबूत उमा भारती?
कहा जाता है कि लोधी समुदाय का भाजपा से जुड़े रहने की बड़ी वजह उमा भारती और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल हैं। अब लोधी समुदाय एमपी में ताकतवर मौजूदगी रखता है। ऐसे तो राज्यभर में इनकी मौजूदगी है, लेकिन ग्वालियर, बुंदेलखंड और बालाघाट जैसे महाकौशल के हिस्सों में इनका दबदबा है। अब प्रीतम लोधी को भाजपा से बाहर करने के बाद लोधी और ब्राह्मण समुदाय के बीच खींचतान सामने आई थी। लोधी के ब्राह्मण विरोधी बयान के बाद भी सियासत गर्मा गई थी।

संन्यास से सियासत
जानकार बताते हैं कि सियासी संन्यास पर भारती राजनीति में अपनी वापसी की राह दख रही हैं। कहा जा रहा है कि उन्होंने निषेध को राजनीतिक मंच बनाया है और आंदोलन की धमकी दी है। हालांकि, जनता के बीच इस मुद्दे की गूंज खास नहीं मानी जाती। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि भारती जाति और समुदाय के मुद्दे उठाकर भी रफ्तार बढ़ा रही हैं।

इस साल होने हैं चुनाव
230 विधानसभा सीटों वाले मध्य प्रदेश में नवंबर 2023 में चुनाव होने हैं। एक ओर जहां भाजपा सरकार में बने रहने की कोशिश में है। वहीं, कांग्रेस 2020 के झटके से उबरकर दोबारा चुनाव जीतने की कोशिश में है।