नई दिल्ली, चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कार्यक्रम का ऐलान कर दिया है. सूबे में 2018 की ही तरह एक फेज में वोट डाले जाएंगे. मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. वोटों की गिनती 3 दिसंबर को होगी. सूबे की सत्ता पर अगले पांच साल तक किसका राज होगा? 5 करोड़ 60 लाख 60 हजार 925 मतदाता इसका फैसला करेंगे. चुनाव आयोग की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश के कुल 5.6 करोड़ मतदाताओं में 2.88 करोड़ पुरुष और 2.72 करोड़ महिला मतदाता हैं. इनमें ऐसे मतदाताओं की तादाद 22.36 लाख है जो पहली बार मताधिकार का उपयोग करेंगे.
लोकसभा चुनाव से करीब तीन-चार महीने पहले होने जा रहे विधानसभा चुनाव को 2024 से पहले लिटमस टेस्ट माना जा रहा है. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सत्ता बचाए रखने के लिए जोर लगा रही है तो वहीं विपक्षी कांग्रेस 2018 की तरह सत्ता का सूखा खत्म कराने के लिए
2018 चुनाव के चुनाव नतीजे
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला हुआ था. मतगणना के समय देर शाम तक भी इसे लेकर तस्वीर साफ नहीं हो सकी थी कि सरकार किसकी बनने जा रही है. जब अंतिम नतीजे आए, बीजेपी वोट शेयर के मामले में आगे रही तो वहीं कांग्रेस सीटों के लिहाज से. तब मध्य प्रदेश में 75.2 फीसदी वोटिंग हुई थी. बीजेपी को 41.6 फीसदी वोट मिले थे और पार्टी ने 230 में से 109 सीटें जीती थीं.
वहीं, विपक्षी कांग्रेस को 41.5 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस की सीटों का आंकड़ा बहुमत के लिए जरूरी 116 सीटों से दो कम 114 पर जाकर रुक गया. वोट शेयर के लिहाज से बीजेपी पॉइंट एक फीसदी आगे रही तो सीटों के लिहाज से कांग्रेस पांच अधिक जीतने में सफल रही. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को 5.1 फीसदी वोट शेयर के साथ दो सीटों पर जीत मिली थी वहीं समाजवादी पार्टी भी 1.3 फीसदी वोट के साथ एक सीट जीतने में सफल रही थी. तब निर्दलीयों के खाते में 5.9 फीसदी वोट गए थे और चार निर्दलीय विधानसभा पहुंचे थे.
2018 से कितनी अलग है तस्वीर
2018 और 2023 के विधानसभा चुनाव में एक बात कॉमन है. बीजेपी तब भी सत्ताधारी दल के रूप में चुनाव में उतरी थी, अब भी सत्ताधारी दल के रूप में ही उतर रही है. लेकिन तब और अब के हालात अलग हैं. तब बीजेपी 15 साल की सरकार के साथ चुनाव में गई थी, अब पार्टी 15 महीने सत्ता से दूर रहने के बाद कांग्रेस विधायकों की बगावत से बनी सरकार के साथ चुनाव मैदान में उतर रही है.
नेताओं की बात करें तो कई बड़े नेता अब दल बदल चुके हैं. 2018 के चुनाव में कांग्रेस के चुनाव अभियान की धुरी रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब बीजेपी में हैं तो सत्ताधारी दल के कई नेता भी अब विरोधी खेमे में जा चुके हैं. पूर्व सीएम कैलाश जोशी के बेटे और तीन बार के पूर्व विधायक दीपक जोशी, पूर्व विधायक कुंवर ध्रुव प्रताप सिंह, राधेलाल बघेल समेत दो दर्जन से अधिक नेता बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं.
गठबंधनों का भी बदला गणित
मध्य प्रदेश के सियासी मिजाज की बात करें तो यहां मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहा है. इस बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और आम आम आदमी पार्टी भी मुकाबले को बहुकोणीय बनाने के लिए पूरा जोर लगा रही है. बसपा ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. समाजवादी पार्टी (सपा) भी बीजेपी और कांग्रेस का खेल बिगाड़ने के लिए यूपी के सीमावर्ती बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में एक्टिव है.
प्रचार की कमान संभाल चुके हैं बड़े चेहरे
चुनाव कार्यक्रम के ऐलान से पहले ही मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के साथ ही आम आदमी पार्टी और सपा की ओर से बड़े चेहरे प्रचार की कमान संभाल चुके थे. बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी, आम आदमी पार्टी की ओर से अरविंद केजरीवाल और सपा की ओर से अखिलेश यादव की रैलियां हो चुकी हैं. अब किसका कितना इफेक्ट होता है, ये तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा.