भोपाल। मध्यप्रदेश में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में शिकस्त खाने के बाद सत्ता से बाहर हुई बीजेपी ज्योतिरादित्य सिंधिया के बलबूते सरकार बना पाई. सिंधिया का कद बीजेपी में लगातार बढ़ा लेकिन नगरीय निकाय चुनाव में बाजी पलटती दिख रही है. नगरीय निकाय चुनाव से पहले तक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी से जो मांगा, सो मिला. मंत्रिमंडल में उनके खास समर्थकों को मनचाही जगह मिली. समर्थकों को निगम- मंडलों में एडजस्ट कराया, लेकिन अब नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी खुद का वर्चस्व दिखाना चाहती है और यही वजह है कि 16 नगर निगमों में सिंधिया के करीबी में से किसी को भी महापौर प्रत्याशी नहीं बनाया गया. हालांकि ग्वालियर -चंबल में सिंधिया अपना दबदबा कायम रखना चाहते थे, इसी वजह से उन्होंने पहले माया सिंह का नाम सामने रखा. फिर पार्टी का क्राइटेरिया आड़े आया तो उन्होंने समीक्षा गुप्ता का नाम रख दिया, लेकिन पार्टी ने उसे भी नकार दिया.ग्वालियर में 35 सिंधिया समर्थकों में से सिर्फ 12 को ही मिला टिकट। भोपाल से विलासराव घाडगे वार्ड 34, गिरीश शर्मा वार्ड 66, ललित चतुर्वेदी वार्ड 83, को नहीं दिया पार्टी ने टिकट।
ग्वालियर में भी तोमर की चली : ग्वालियर महापौर उम्मीदवार के लिए तोमर के करीबी को टिकट दिया गया. सुमन शर्मा के नाम पर ज्योतिरादित्य सिंधिया सहमत नहीं थे, लेकिन पार्टी के बाकी दिग्गज एक साथ तोमर के समर्थन में खड़े हो गए और बाजी नरेंद्र सिंह तोमर ले गए. सिंधिया को मनाने के लिए केंद्रीय संगठन को आगे आना पड़ा और उनकी भी सहमति लेकर सुमन शर्मा को ग्वालियर महापौर के लिए प्रत्याशी बनाया गया. ग्वालियर महापौर प्रत्याशी का एलान चार दिन की मशक्कत के बाद हो पाया. बीजेपी का तर्क रहा कि जिस तरह से भोपाल इंदौर और सागर में स्थानीय विधायकों की सहमति से नाम तय किया, उसी रणनीति के तहत ग्वालियर में भी काम किया गया.