जबलपुर। मध्यप्रदेश के जबलपुर में दयोदय तीर्थ तिलवारा में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने आज प्रवचन में कहा कि सत्य से हमारे भावों में शीतलता आ जाती है। हमारे भाव स्थिर हो जाते हैं, असत्य वचन कठोरता लाते हैं। कुछ लोग स्पष्ट बोलते हैं, अस्पष्ट बोलने में संदेह पैदा होता है। कुछ लोग सही दिशा में कही बात को गलत दिशा की ओर मोड़ देते हैं। इस तरह यह चिंता का विषय बन जाता है। उससे सत्य वचन बोलने वालों की रातों की नींद भी गायब हो जाती है। यह स्थिति कभी भी जीवन में नहीं आना चाहिए। संवाद में भी असत्य वचन नहीं होना चाहिए, वाद विवाद होते हैं, निश्चित है, लेकिन उसकी एक सीमा होती है, उस सीमा में ही संवाद होना चाहिए, कभी अप्रिय वचन न बोलो हमेशा प्रिय बोलो सदैव मीठा बोलो, स्पष्ट बोलो कठोर भी बोल सकते हैं अप्रिय भी बोल सकते हैं लेकिन इसमें सामने वाले का हित संचित होना चाहिए। इतने प्रिय वचन नहीं बोलना चाहिए जिसमें उसका अहित-निहित हो कई बार लोग इस तरह से बात करते हैं जो सुनने में बहुत प्रिय लगती है। लेकिन उसके पीछे क्या स्वार्थ है वह बोलने वाला ही जानता है, यह कपट की श्रेणी में आता है। जीव-जंतुओं में भाषा विज्ञान नहीं है वह मात्र ध्वनि से ही संवाद करते हैं। मनुष्य के संवाद करने की शक्ति होती है शब्दों में होते हैं। जहां तीन भुवन विद्यमान है, जो स्पष्ट है वही उपदेश है यदि आपने क्रोध के भाव के साथ शब्द कहे हैं तो उसमें क्रोध ही झलकता है, वैज्ञानिक यंत्रों के माध्यम से भी जांच करा ले तो भी क्रोध भाव ही आएगा। शब्द कहां तक जाते हैं उसके परिणाम भी सभी पूर्व आचार्य ने अच्छे से वर्णन किया है, जिनके तीन लोक के हित करने के भाव के साथ और दुनिया में श्रेष्ठ कार्य करने का भाव है उनका अहित नहीं होता।

आचार्य श्री विनोद भाव से कहते हैं कि बच्चों को यदि आप हमेशा लाड़-प्यार करते रहेंगे हंसाते रहेंगे तो वह बिगड़ जाएंगे। इसलिए बीच-बीच में यदि कठोर वचन बोल दिया जाए तो उनके जीवन में अच्छा प्रभाव पड़ता है वह संभल जाते हैं लेकिन कठोर वचन के बाद थोड़े समय में उन्हें समझाना अति आवश्यक, आंसू आ जाते हैं, बच्चा यदि रो भी रहा हो तो वह आपके प्यार से हंसने मुस्कुराने लगता है। बहुत कठिन है बच्चों का पालन उन्हें उचित और सत्य मार्ग दिखाना चाहिए, वैज्ञानिक ढंग क्या है? विज्ञान कहने का मतलब अलौकिक विज्ञान से नहीं है। आत्मा के परिणाम से ही होता है, यही विज्ञान मनुष्य के जीवन में ज्ञान पैदा कर देता है। शब्दालंकार के बिना काव्य की रचना की जाए तो वह पठनिया नहीं होती आधा पढ़कर ही रख दिया जाता है। क्योंकि वह काबिल नहीं, शब्दों का जंगल होता है, लेखन में भाव-भावों की निर्मलता के साथ संदेश भी होना आवश्यक है, एक शब्द के कई अर्थ निकल सकते हैं लेकिन तात्कालिक कौन सा अर्थ और भाव कहा जा रहा है उसे जानना भी आवश्यक होता है, अध्ययन के माध्यम से, ग्रंथों के माध्यम से, हमारी बुद्धि, बुद्धि के माध्यम से सब कुछ समझ में आ सकता है, इसलिए शब्द मीमांसा वाणी का एक चमत्कार है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। बुद्धिमान जो बोलते हैं लिखते हैं, उनकी शब्द संरचना से अर्थ अपने आप झलकने लगते हैं, भाव क्या है इसका स्पष्टीकरण होने लग जाता है।

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