रायपुर। सन्मति नगर फाफाडीह में आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी का शनिवार शाम समापन हुआ। संगोष्ठी के पश्चात विशुद्ध वर्षा योग समिति ने सभी विद्वानों का सम्मान किया। तीन दिनों में कुल 7 सत्रों में देशभर से आए आगम के विद्वानों ने आलेख का वाचन किया। तीन दिवसीय विद्वत संगोष्ठी एवं इसके पूर्व आयोजित 2 दिवसीय श्रमण संगोष्ठी में सारे वक्ताओं ने आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज रचित वस्तुत्व महाकाव्य पर अपने आलेख प्रस्तुत किए। 5 दिवसीय संगोष्ठी में प्राप्त सुझावों पर अमल कर ग्रंथ को पूर्ण शुद्धि के साथ प्रकाशित किया जाएगा। संगोष्ठी के पश्चात आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने अपनी मंगल देशना दी।
आचार्यश्री ने कहा कि वस्तु,वास्तु और वस्तुत्व तीनों भिन्न। यथार्थ में वास्तु का अर्थ एक संज्ञा है,वस्तु द्रव्य है,वस्तुत्व गुण हैं, वास्तु एक संज्ञा है,वस्तुत्व धर्म है। छह द्रव्य वस्तु है, छह द्रव्य वास्तु नहीं है। सातों तत्व, वस्तु है,9 पदार्थ वस्तु है,वास्तु नहीं है। 6 द्रव्य,सातों तत्व,9 पदार्थ वस्तुत्व है, वास्तु भी वस्तुत्व है लेकिन वास्तु स्वतंत्र संज्ञा है। वास्तु का अर्थ भवन है न कि संपूर्ण विश्व है। आचार्यश्री ने कहा कि ज्ञानियों नौ कर्म बोल रहा है, एक वस्तु का 9 कर्म नहीं होता है। कमरे और दीवारों को दोष मत देना,जब आसपास चिपक कर बैठोगे तो गर्मी लगेगी ही,कष्ट होगा और पसीने की दुर्गंध से सिर भी चढ़ सकता है। ज्ञानियों शरीर के पसीने से दुर्गंध हुई है, कमरे व दीवारों को दोष मत दो। सबसे बड़ा वास्तु को दूषित करने वाला मानव का शरीर व गलत आदतें हैं। केवल भवन को सुधारने के लिए ही नहीं,अपनी गलत आदतों को सुधारने के लिए अपनी आदत में भी वास्तु खोजिए। मदिरापान कर रहे हो,पर स्त्री को झांक रहे हो, वेश्या गमन कर रहे हो,अभक्ष खा रहे हो,न जाने क्या क्या कर रहे हो,अब आप कंगाल नहीं होगे तो क्या होगे ?
आचार्यश्री ने कहा कि आप कहते हो इस मकान में जब से आए हैं तब से ऐसा हो गया,वैसा हो गया। अरे आप इस मकान में नहीं आए थे तब आप जहां थे वहां सुरक्षित थे। यहां आपने पिता और माता से दूर रहकर मनमानी शुरू कर दी है,तो आप मन और तन से बीमार ही होगे। वहां मां के साथ मयार्दा में रह रहे थे, पिता से डरते थे,अब आपका स्वतंत्र मकान बन गया तो रात के 12 बजे घर लौट रहे हो,घर में क्या-क्या नहीं कर रहे हो,कौन कौन आपके घर में आ रहे हैं और कहते हो मकान में वास्तु बिगड़ गया। आचार्यश्री ने कहा कि मित्रों ठीक ही कह रहे हो,वास्तु बिगड़ ही गया है,आपके मकान का नहीं,आपका बिगड़ गया है। ज्ञानियों वास्तु के नाम पर हव्वा मत बनाइए,उसे वस्तु समझिए। अपने घर में वृक्ष लगाओ, घर का गंदा वातावरण स्वच्छ होगा, स्वच्छ वायु आएगी, आपका मस्तिष्क स्वस्थ रहेगा,वास्तु ठीक हो जाएगा। अब न दुर्गंध,न सिर दर्द होगा। वैसे भी कोरोना ने सबको सिखा ही दिया है,स्वच्छता में ही स्वस्थता है।
आचार्यश्री ने कहा कि अब ज्ञानियों खिड़की को दोष मत देना,ठंडी में खिड़की बंद करना ही वास्तु है, गर्मियों में खिड़की खोलना ही वास्तु है। द्रव्य, क्षेत्र,काल, प्रकृति,भाव सबका प्रभाव पड़ता है। वास्तु बदल सकता है, वस्तु नहीं बदलती है। घर में मेहमान बुलाना भी वास्तु का सुधार है। घर में 2 के बीच नोकझोंक हो जाए और कहीं मेहमान आ जाए तो दोनों ठंडे हो जाते हैं। जब अतिथि के घर में आने पर आपका वास्तु ठीक हो जाता है तो जिन्हें अपना वास्तु हमेशा ठीक करना हो तो दिगंबर मुनियों को आहार कराओ, घर में आनंद ही आनंद आएगा।
आचार्यश्री ने कहा कि जैसा जीवत्व आपके भीतर है,वैसा जीवत्व दूसरों के भीतर है। जिसे आप कीड़े-मकोड़े समझ रहे हो, वह जीव भी भगवान बनने की योग्यता रखता है। यह भारत भूमि है, यह मातृभूमि-तीर्थ भूमि है,दुनिया में कहीं वंदेमातरम का पाठ नहीं होता,मात्र भारत की भूमि पर होता है। इस दृष्टि से महासत्ता में देखो,जब विश्वरूपा सत्ता है तो आप भी जीव हो, वह भी जीव है तो उसे मारो मत, इसलिए जियो और जीने दो।