शिवपुरी । पिछले साल 17 अगस्त की बात है। शिवपुरी जिले के पिछोर में एक कार्यक्रम में प्रीतम सिंह लोधी ने ब्राह्मणों के बारे में विवादित टिप्पणी की थी। इसके बाद पूरे एमपी में ब्राह्मणों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। घबराई बीजेपी ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था, लेकिन यह फैसला आठ महीने भी नहीं टिक सका। इस साल मार्च में उनकी बीजेपी में वापसी हो गई। प्रीतम लोधी दो बार विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। उनके खिलाफ तीन दर्जन से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं। पार्टी से निकाले जाने के बाद वे खुलेआम बीजेपी को सबक सिखाने की चेतावनी दे रहे थे। फिर क्या कारण था कि पार्टी में उनकी वापसी कराई गई। और तो और, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया उन्हें मनाने की कोशिशों में लगे थे। इसका कारण है राज्य में इस साल के अंत में होने वाला विधानसभा चुनाव जिसके लिए बीजेपी जातिगत समीकरणों को साधने में लगी है।

उमा भारती के करीबी
प्रीतम लोधी पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के बेहद करीब हैं। उमा उन्हें अपना मुंहबोला भाई मानती हैं। उमा भारती की तरह प्रीतम भी लोध समुदाय से आते हैं। उमा पहले ही बीजेपी नेतृत्व से नाराज चल रही हैं। वे सीएम शिवराज के खिलाफ भी खुलकर बयान देती रहती हैं। कुछ महीने पहले एक कार्यक्रम में उन्होंने लोध मतदाताओं से बीजेपी को वोट नहीं देने की अपील तक कर दी थी। इसके बाद से बीजेपी नेतृत्व को लोध वोटों की चिंता सताने लगी थी। इसके बाद से ही प्रीतम लोधी को पार्टी में वापस लाने की मुहिम जोर पकड़ने लगी थी।

50 विधानसभा सीटों पर असर
एमपी में लोध समुदाय के करीब पांच फीसदी वोट ही हैं, लेकिन राज्य की करीब 50 विधानसभा सीटों पर उनका प्रभाव है। प्रदेश की करीब एक दर्जन लोकसभा क्षेत्रों में भी लोध मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है। नर्मदापुरम, नरसिंहपुर, मंडला, छिंदवाड़ा, दमोह, जबलपुर, खजुराहो, शिवपुरी और सागर जिलों में लोध समुदाय का सियासी प्रभाव ज्यादा है। ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और महाकौशल क्षेत्र में वे किसी भी पार्टी का सियासी गणित बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं। केवल एमपी ही नहीं, इसकी सीमा से लगे राजस्थान और उत्तर प्रदेश की करीब दो दर्जन सीटों पर भी वे चुनाव के नतीजे प्रभावित कर सकते हैं।

1976 में पहला आपराधिक मामला
प्रीतम लोधी के खिलाफ अलग-अलग धाराओं में तीन दर्जन से ज्यादा आपराधि मामले दर्ज हैं। पहला मामला साल 1976 में बलवा और मारपीट करने की धाराओं में दर्ज किया गया था। हत्या और हत्या के प्रयास के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत भी उनके खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है। उन्हें जिलाबदर भी किया जा चुका है। 2003 से पहले तक प्रीतम लोधी की राजनीति में सक्रियता नहीं के बराबर थी। 2003 में उमा के सीएम बनते ही उनका राजनीतिक ग्राफ तेजी से चढ़ने लगा। 2014 में गैंगस्टर हरेंद्र राणा को संरक्षण देने के आरोप में उन्हें ग्वालियर पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था।

दो बार चुनाव हारे
प्रीतम लोधी पिछोर में कांग्रेस के के पी सिंह के खिलाफ दो बार बीजेपी के टिकट विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। उन्हें दोनों बार हार का सामना करना पड़ा। के पी सिंह पिछले 30 साल से पिछोर से विधायक चुने जाते रहे हैं। पिछले साल स्थानीय निकाय चुनावों के दौरान प्रीतम की पत्नी ग्वालियर के वार्ड नंबर 63 से पार्षद पद की उम्मीदवार थीं। उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा था।