नई दिल्ली , बेरोजगारी भारत की बड़ी समस्याओं में से एक है. बड़ी विडंबना की बात है कि जिस देश में श‍िक्षा उद्योग 117 अरब डॉलर का है. जहां इंजीनियरिंग-मेडिकल से लेकर स्क‍िल कोर्सेज के संस्थानों का जमघट है. विशालकाय कैंपस वाले संस्थानों की मोटी फीस देकर हर साल लाखों छात्र डिग्र‍ियां ले रहे हैं. लेकिन वो सारी डिग्र‍ियां उनके क‍िसी काम नहीं आती हैं. यह दावा कर रही है इंडिया स्क‍िल्स रिपोर्ट 2023.

डिग्री लेने वाले 50 पर्सेंट युवाओं के पास स्क‍िल नहीं
इंडिया स्क‍िल्स रिपोर्ट 2023 में खुलासा हुआ है कि भारत में डिग्री लेने वाले 50 पर्सेंट युवा ऐसे हैं जिनके पास नौकरी के लिए पर्याप्त स्क‍िल नहीं है. कंपनी ने ये रिपोर्ट तैयार करने के लिए 3 लाख 75 हजार छात्रों का टेस्ट लिया था. इसके बाद टेस्ट के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई. रिपोर्ट में आए आंकड़े बताते हैं कि भारत में करीब 50 पर्सेंट युवा ऐसे हें जो रोजगार के योग्य नहीं है, इनमें से ऐसे युवा ज्यादा हैं जिनके पास स्नातक और परास्नातक की डिग्री है.

क्या होगा बीएससी-बीकॉम डिग्री का
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आने वाले अगले कुछ सालों में ऐसे 50 पर्सेंट युवा अयोग्य हो जाएंगे जिनके पास ग्रेजु‍एट डिग्री है. वहीं वर्तमान की बात करें तो आज एमबीए की डिग्री वाले 40 पर्सेंट युवा नौकरी के योग्य नहीं हैं. इनके पास हुनर नहीं है. वहीं इंजीनियरिंग के 43%, बीकॉम के 40%, बैचलर ऑफ साइंस यानी बीएससी के 63%, आईटीआई से डिप्लोमा या अन्य कोर्सेज करने वाले 66%, पॉलीटेक्निक 72 और बैचलर इन फार्मेसी यानी बीफार्म 43 के पर्सेंट छात्र ऐसे निकले जो नौकरी के योग्य नहीं है. इसका सीधा अर्थ है कि इन युवाओं के पास डिग्री तो हैं पर योग्यता नहीं है.

योग्य हैं महिलाएं पर मिलीं कम नौकरियां
आज जब लड़कियां हर तरफ सफलता के झंडें गाड़ रही हैं, स्क‍िल में भी वो किसी से पीछे नहीं हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि श‍िक्ष‍ित पुरुषों की तुलना में श‍िक्ष‍ित महिलाएं ज्यादा योग्य हैं. साल 2022 में 47 पर्सेंट पुरुष और 54 पर्सेंट महिलाएं योग्य थीं, पर महिलाओं को नौकरियां कम मिलीं.

लेबर मार्केट में 5.5 करोड़ ग्रेजुएट
रिपोर्ट में यूनिसेफ लेख के हवाले से बताया गया है कि देश के लेबर मार्केट में वर्तमान में साढ़े पांच करोड ग्रेजुएट हैं. भविष्य की बात करें तो अनुमान लगाया गया है कि साल 2030 में इस मार्केट में दसवीं पास युवाओं की संख्या 30 करोड़ हो जाएगी. इसे विरोधाभास ही तो कहा जाएगा कि टेक्नोलॉजी और मैनेजमेंट के टॉप इंस्टीट्यूट जैसे अल्फाबेट इंक को सुंदर पिचाई और माइक्रोसॉफ्ट को सत्या नडेला जैसे भारतीय हेड कर रहे हैं. उसी देश में युवाओं के पास दो से तीन डिग्री होते हुए भी बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है. नौकरी दिलाने का वादा करने वाले बड़े बड़े संस्थानों जिनके राजमार्गों पर होर्डिंग लगे हुए हैं. वो युवाओं को किसके लिए तैयार कर रहे हैं.

दुनिया भर में, आज छात्र तेजी से डिग्री बनाम लागत पर रिटर्न पर विचार कर रहे हैं. उच्च शिक्षा ने अक्सर विश्व स्तर पर विवादों को जन्म दिया है, जिसमें अमेरिका भी शामिल है, जहां लाभकारी संस्थानों को सरकारी जांच का सामना करना पड़ा है. फिर भी भारत में शिक्षा की जटिलताएं स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही हैं. अब सरकार को इससे निबटना होगा.