रायपुर।  जितना जीवन मिला है आनंद के साथ जिओ, पर्याय विलीन हो जाएगी,किसने देखा है कौन कब इस संसार से जाएगा, इसलिए धर्म के साथ जिओ, पर धर्म को समझ कर जिओ। संसार में जो दुखी प्राणियों को दुख से उठाकर सुख प्रदान कर दे उसी का नाम उत्तम धर्म है। धर्म नाम से प्रभावित मत होना,धर्म का स्वरूप समझना। मित्रों धर्म का मर्म समझो,जो वीतरागता से युक्त है, सरागता का निश्रण करता है, वीतराग मार्ग का व्याख्यान करने वाला है, अहिंसा परम ब्रह्म की बात करने वाला है, ऐसा धर्म ही आपको सिद्धि प्रदान करेगा। यह उपदेश सन्मति नगर फाफाडीह में जारी चतुर्मासिक प्रवचनमाला में आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने दिया।

आचार्यश्री ने कहा कि महान योगियों ने श्रुत को प्रवाहमान किया है, वही श्रुत को आचार्य पदमनंदी स्वामी ने धम्म रसायण ग्रंथ में निबंधित किया है। धर्म शब्द को सुनकर बहुत सुंदर लगता है, लेकिन आचार्य पदमनंदी स्वामी कह रहे हैं कि मित्र शीघ्र प्रभावित मत हो जाना। पशु-पक्षी भी सुंदर डाली,पुष्प लताओं,फल को देखकर तुरंत प्रभावित नहीं होते हैं। हर पत्ती को नहीं खाते हैं,घास को भी सूंघ-सूंघ कर चरते हैं। यदि अचानक खराब घास मुंह में आ जाए तो तुरंत मुख से बाहर कर देते हैं,आप तो मनुष्य हो, समझदार जीव हो, विवेकशील हो, मननशील हो, मनुष्य की पहचान ही है,जो मननशील व चिंतनशील है उसका नाम मनुष्य है।