जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में असिस्टेंट ग्रेड व शीघ्र लेखकों के 1255 पदों पर शत-प्रतिशत कम्युनल आरक्षण लागू नहीं किए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस अजय रस्तोगी तथा जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने मप्र हाईकोर्ट को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। याचिका पर अगली सुनवाई 6 फरवरी को निर्धारित है।
याचिकाकर्ता पुष्पेन्द्र पटैल की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी में कहा गया है कि 30 मार्च को हाईकोर्ट द्वारा जारी प्रारंभिक परीक्षा के रिजल्ट में 100 प्रतिशत कम्युनल आरक्षण लागू किया गया है। आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में चयनित नहीं किया गया है। इसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट की युगलपीठ ने सुनवाई के बाद दो जनवरी को याचिका खारिज कर दी थी।
युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि विज्ञापन में प्रारंभिक परीक्षा का आयोजन स्क्रीनिंग टेस्ट के रूप में किया गया है। स्क्रीनिंग टेस्ट का आयोजन अभ्यर्थियों को शॉर्ट लिस्ट करने के लिए किया गया था। इसलिए उसमें आरक्षण लागू नहीं होता है। युगलपीठ ने हाईकोर्ट की भर्ती प्रक्रिया को सही करार देते हुए अपने आदेश में कहा है कि चयन प्रक्रिया में आरक्षण व्यवस्था लागू होती है। ये तो स्क्रीनिंग थी।
सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने उक्त भर्ती प्रक्रिया में असंवैधनिक रूप से आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4 (4) के विरुद्ध रिजल्ट बनाया है, जो संविधान के अनुछेद 14 एवं 16 का खुला उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच द्वारा इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ के प्रकरण में 1992 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अनारक्षित वर्ग में सिर्फ मेरिटोरियस चाहे किसी भी वर्ग के हों, चयनित किया जाएगा तथा उक्त प्रक्रिया परीक्षा के प्रत्येक चरण में लागू की जाएगी।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा भी 7 अप्रैल 2022 को पीएससी परीक्षा से संबंधित प्रकरणों में स्पष्ट रूप से व्यवस्था दी गई है कि अनारक्षित वर्ग का जन्म ही मेरिटोरियस अभ्यर्थियों से ही होता है। जो कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांत इंद्रा साहनी बनाम भरतसंघ, सौरभ यादव वनाम उत्तरप्रदेश राज्य, राजेश कुमार डारिया में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने पैरवी की।