दागी नेताओं के चुनावी भविष्य पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि चार्जशीट के आधार पर जनप्रतिनिधियों पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है. चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सिर्फ चार्जशीट ही काफी नहीं है. यानी सुप्रीम कोर्ट ने दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आम जनता को अपने नेताओं के बारे में पूरी जानकारी होना जरूरी है. कोर्ट ने कहा है कि हर नेता को अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग को देनी चाहिए. कोर्ट ने कहा है कि इस मसले संसद को कानून बनाना चाहिए.

इसके अलावा सभी पार्टियों को अपने उम्मीदवारों की जानकारी अपनी वेबसाइट पर डालनी होंगी. वहीं सभी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से पहले तीन बार प्रिंट मीडिया और एक बार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपने रिकॉर्ड की विस्तृत जानकारी देनी होगी.

इस याचिका की सुनवाई पांच जजों की पीठ कर रही थी. इस पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरिमन, जस्टिस एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल हैं. बता दें कि अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपनी दलील में कहा था कि ज्यादातर मामलों में आरोपी नेता बरी हो जाते हैं, इसलिए सदस्यता रद्द करने जैसा कोई आदेश न दिया जाए.

दरअसल, इस याचिका में मांग की गई थी कि अगर किसी व्यक्ति को गंभीर अपराधों में 5 साल से ज्यादा सजा हो और किसी के खिलाफ आरोप तय हो जाएं तो ऐसे व्यक्ति या नेता के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए. इसके अलावा याचिका में ये मांग भी की गई है कि अगर किसी सासंद या विधायक पर आरोप तय हो जाते हैं तो उनकी सदस्यता रद्द होनी चाहिए.

काफी पुराना है मामला?

इस मामले की सुनवाई के दौरान मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था. इस मामले में बीजेपी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं भी लंबित हैं. याचिका में कहा गया है कि इस समय देश में 33 फीसदी नेता ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराध के मामले में कोर्ट आरोप तय कर चुका है.

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