नई दिल्ली। आपराधिक मामले में जनहित याचिका दायर होने से खिन्न उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक वकील से सवाल किया, ‘क्या बलात्कार पीड़िता का कोई रिश्तेदार राहत के लिए हमारे सामने है, या क्या आपका कोई ऐसा रिश्तेदार है जिससे बलात्कार हुआ है?’ न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने अधिवक्ता मनोहन लाल शर्मा से जनहित याचिका दायर करने के उसके औचित्य पर सवाल उठाते हुए अचरज व्यक्त किया कि आपराधिक मामलों में जनहित याचिका कैसे दायर हो सकती है? दरअसल, इस वकील ने आरोप लगाया था कि पुलिस बलात्कार के ऐसे मामलों में प्राथमिकी दर्ज नहीं कर रही हैं जिनमें मंत्रियों, सांसदों या विधायकों जैसे ताकतवर लोगों की संलिप्तता होती है।
शीर्ष अदालत ने इस वकील से जानन चाहा कि उन्नाव बलात्कार कांड के संदर्भ में उसकी क्या हैसियत है। न्यायालय यह भी जानना चाहता था कि उन्नाव कांड से वह किस तरह प्रभावित है और इससे उसका क्या संबंध है। पीठ ने कहा, ‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पहले ही इस मामले में कुछ आदेश दिए हैं। शर्मा जी आप इस मामले में प्रभावित व्यक्ति नहीं है। आपराधिक मामले में जनहित याचिका दायर नहीं हो सकती है।’ शर्मा ने आरोप लगाया कि पूर्व मंत्रियों और विधायकों जैसे ताकतवर लोगों की संलिप्तता वाले बलात्कार के अनेक मामलों में पुलिस प्राथमिकी दर्ज नहीं कर रही है।
पीठ ने सवाल किया कि इन बलात्कार के मामलों में आप कौन हैं? क्या बलात्कार पीडि़ता का कोई रिश्तेदार राहत के लिये हमारे सामने है? क्या आपका ऐसा कोई रिश्तेदार है जिसके साथ बलात्कार हुआ है। पीठ की तल्ख टिप्पणी के बाद न्यायालय कक्ष में वकीलों के बीच एकदम सन्नाटा पसर गया। इसके बाद भी जब शर्मा ने अपनी याचिका पर जोर दिया तो न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए कहा कि इस पर विचार नहीं किया जा सकता।
शीर्ष न्यायालय उप्र के भाजपा विधायक की कथित संलिप्तता वाले उन्नाव सामूहिक बलात्कार मामले की सीबीआई जांच के लिए दायर याचिका पर 11 अप्रैल को सुनवाई के लिए तैयार हो गई थी। शर्मा का यह भी आरोप था कि पीड़िता के पिता को यातना दी गई और सत्तारूढ़ पार्टी के इशारे पर पुलिस हिरासत में उनकी हत्या भी हो गई है। उन्होंने पिछले साल जुलाई में नाबालिग लड़की के अपहरण और बलात्कार के मामले की सीबीआई जांच का भी अनुरोध किया था। (भाषा)