झारखंड के गिरिडीह जिले में सम्मेद शिखर नामक एक जैन तीर्थ स्थल है। एक दृष्टि से यह संसार के संपूर्ण जैन समाज का अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह वैसा ही है, जैसा कि हिंदुओं के लिए हरिद्वार है, यहूदियों और ईसाइयों के लिए यरूशलम है, मुसलमानों के लिए मक्का-मदीना है और सिखों के लिए अमृतसर का स्वर्ण मंदिर है। सम्मेद शिखर में जैनों के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने निर्वाण प्राप्त किया है। दुनिया में किसी भी जैन संप्रदाय का कोई भी व्यक्ति कहीं भी रहता हो, उसकी इच्छा यह रहती है कि जीवन में कम से कम एक बार वह सम्मेद शिखरजी की यात्रा जरूर कर ले।

मेरे कुछ जैन परिवारजन ने बताया कि अपने बाल्यकाल में वे जब सम्मेद शिखर पर जाते थे तो मुँहपट्टी लगाए रखते थे या मुँह खोलते ही नहीं थे ताकि किसी जीव की हिंसा न हो जाए। ऐसा पवित्र भाव जिस तीर्थ के लिए करोड़ों लोगों के दिल में रहता हो, यदि उसे सरकार एक पर्यटन स्थल बना दे तो क्या होगा? सरकार ने अभी-अभी उस सुरम्य पर्वत को अब पर्यटन स्थल घोषित कर दिया है। यानी अब लोग वहाँ पूजा-अर्चना करने नहीं, मौज-मजा करने के लिए आएंगे। वे वहाँ शराब पिएँगे, मांसाहार करेंगे और बहुत-से अनैतिक काम भी वहाँ होने लगेंगे।

उस परम पवित्र स्थान की पवित्रता अब इतिहास का विषय बन जाएगी। सारे भारत का जैन समाज इस आशंका से उद्वेलित है। दिल्ली, मुंबई तथा कई अन्य शहरों और गांवों में जैन-समाज सड़कों पर उतर आया है। वह सम्मेद शिखर को पर्यटन केंद्र बनाने की घोषणा को निरस्त करने की मांग कर रहा है। उनकी यह मांग बिल्कुल जायज़ है। मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस मांग का समर्थन किया है। वे क्यों नहीं करेंगे? दुनिया के सभी धर्मों के लोग अपने-अपने धर्म-स्थलों की पवित्रता के लिए अपनी जान भी कुर्बान कर देते हैं। क्या मक्का-मदीना में काबा जाकर कोई शराब पी सकता है? क्या किसी हिंदू तीर्थ या मंदिर के पास बैठकर कोई गोमांस की बिक्री कर सकता है?

इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि सम्मेद शिखर जैसे सुरम्य पर्वतीय स्थलों पर पर्यटकों को जाने की मनाही हो। वे जरूर जाएं लेकिन उनका आचरण नियंत्रित हो, मर्यादित हो और धर्मप्रेमी लोगों का ध्यान भंग करने वाला न हो। सरकार चाहे तो उसे दुनिया का चहेता पर्यटन केंद्र बनवा दे लेकिन सर्वहितकारी जैन-सिद्धांतों का वहाँ उल्लंघन न हो, यह भी उतना ही जरूरी है।