नई दिल्ली।  भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास चरम पर पहुंच चुकी मुद्रास्फीति को दो साल के अंदर चार फीसदी तक लाना चाहते हैं। यह बात उन्होंने मंगलवार को एक मीडिया हाउस को दिए साक्षात्कार में कही।उन्होंने कहा, मुद्रास्फीति चरम पर है और मूल्य लाभ स्थिर हो रहा है। केंद्रीय बैंक आने वाले हर डेटा पर नजर रखे हुए है और इस मामले में संतोष करके बैठने के लिए कोई जगह नहीं है।

गौरतलब है कि आरबीआई ने मई के बाद से दर में कुल 140 आधार अंकों की वृद्धि की है, जिसमें जून और अगस्त में एक के बाद एक आधा फीसदी की वृद्धि शामिल है, ताकि मुद्रास्फीति को छह फीसदी के अपने लक्ष्य तक लाया जा सके। जुलाई में लगातार तीसरे महीने उपभोक्ता कीमतों में गिरावट आई है लेकिन यह अभी भी छह फीसदी के ऊपर बनी हुई है।

बैंकों के निजीकरण में भूमिका नहीं
इसके अलावा उन्होंने बैंकों के निजीकरण के मुद्दे पर स्पष्ट किया कि आरबीआई केवल बैंकों के नियमन पर नजर रखता है। बैंकों के मालिकाना हक को लेकर कोई भूमिका नहीं है। यह स्पष्टीकरण उन्होंने आरबीआई की तरफ से जारी स्वतंत्र लेख को लेकर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि क्रिप्टोकरेंसी बहुत अधिक वित्तीय अस्थिरता पैदा कर सकती है। इसका विदेशी मुद्रा दर और नीति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

विकास का बलिदान नहीं करेगा आरबीआई
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति नीतिगत दरों में वृद्धि की रफ्तार को कम भी कर सकती है। डॉयचे बैंक ने यह अंदाजा लगाया है कि आरबीआई सितंबर में होने वाली समीक्षा बैठक में रेपो रेट में चौथाई प्रतिशत की वृद्धि कर सकता है। दास ने कहा, हम विकास के बलिदान के बिना, चार फीसदी मुद्रास्फीति लक्ष्य तक पहुंचेंगे। दास ने तर्क दिया कि कई कारक महंगाई में योगदान करते हैं, जिसमें यूरोप और अमेरिकी जैसे क्षेत्रों से विश्वस्तर पर टकराव शामिल हैं।