जबलपुर। मध्यप्रदेश के जबलपुर में दयोदय तीर्थ तिलवारा में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने आज प्रवचन में कहा कि विद्यार्थियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो प्रश्न उनसे पूछे जा रहे हैं उसका सही और उचित उत्तर दें। जो प्रश्न पूछा गया है उत्तर उसी के अनुरूप होना चाहिए। मेरा ऐसा मानना है कि सभी की मुक्ति होना है और मुक्ति के समय जो प्रश्न पत्र आ जाएगा वह आपके कर्मों के प्रश्नों को आपके सामने रखेगा। उसका उत्तर आपको ही देना होगा। शरीर आश्रित शक्ति की परीक्षा तीन काल में होती है, कुछ समय के लिए वह दिखाई दे सकती है लेकिन अपने आप ही वह गौण हो जाती है। मानसिक संतुलन बिगड़ता है तो शारीरिक संतुलन भी बिगड़ जाता है।

जीवन के कर्म-प्रश्न भी हो सकते हैं रू आचार्यश्री ने कहा कि इस प्रश्नावली में आपके जीवन के कर्म-प्रश्न भी हो सकते हैं, पूरे जीवन की समस्याएं भी हो सकती है। हम पूरे जीवन भर दूसरों से प्रतियोगिता करते रहते हैं अपने कार्यों को छोड़कर दूसरे को देखते रहते हैं। यही भाव होता है कि देखो हमने उसे हरा दिया। कूबत कम गुस्सा ज्यादा लक्षण है। भरत चक्रवर्ती हार गए एक नहीं तीन बार, गुस्से के कारण, अंत में भरत चक्रवर्ती ने बाहुबली पर चक्र से हमला कर दिया, चक्र बाहुबली की परिक्रमा करके वापस आ गया, तीन परीक्षाओं का निर्णय हुआ था लेकिन गुस्से में भरत चक्रवर्ती ने बाहुबली पर चक्र भी अजमा लिया पर कुछ हुआ नहीं। चक्र की अपनी नीतियां होती है उससे बाहर वह काम नहीं कर सकता। जीवन परीक्षा पूरी तरह नीति पर आधारित है किसी को दुख-कष्ट नहीं दिया जा सकता। बाहुबली ने नीति और धर्म का साथ दिया था इसलिए एक भी परीक्षा में वह पराजित नहीं रहे। लेकिन बाहुबली का मन हर बार कचोटता था कि बड़े भाई के साथ युद्ध नहीं करना चाहिए। यह छोटे का कर्तव्य नहीं है। हर समय, प्रत्येक पल हमारी परीक्षा होती रहती है। हमारा लक्ष्य, हमारी दृष्टि, हमारी स्थिरता वहां तक रहे जहां तक कर्तव्य पालन में कोई प्रश्न न हो। अपने ही कर्म करने के लिए क्या निष्ठा है, नीति है यह हमारी परीक्षा लेती रहती है उसमें हमें पास होना है क्योंकि नीति ही हमारा कर्तव्य है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *