हमारे जीवन में जो कुछ सफलता प्राप्त होती है या अच्छा घटित होता है उसे हमने प्राप्त किया ऐसा श्रेय स्वयं प्राप्त कर लेते हैं. यदि असफल हो गए तो हम ईश्वर को दोष देने लगते हैं. या यूं कहे कि हम भाग्य को कोसने लगते हैं. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. ईश्वर कभी भी किसी का गलत नहीं कर सकता. वैसे भी ईश्वर हमें सुख-दु:ख नहीं देता, बल्कि हमारा किया हुआ पूर्व कर्म ही हमें सुख-दु:ख देता है.
उक्त उद्गार श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने संस्कारमय पावन वर्षायोग समिति एवं सहयोगी संस्था जैन मिलन परिवार के तत्वावधान में भिण्ड महावीर कीर्ति स्तभ में आयोजित 48 दिवसीय भक्तामर महामंडल विधान में व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि ईश्वर के प्रति विश्वास रखने से जीवन का वास्तविक अर्थ सिद्ध हो जाता है. कोई कितना भी बड़ा विद्वान क्यों न हो, किन्तु प्रभु व गुरु के सम्मान बिना उसकी विद्या अधूरी है. जो शाश्वत है, अनंत रूप है ऐसे ईश्वर से प्रेम करो. हृदय से ईश्वर के प्रति सतत् एवं अनन्य प्रेम करना ही भक्ति है.
मुनि ने कहा कि जीवन में जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, जो प्राप्त हो रहा है, वह पर्याप्त है. इसलिए जीवन में संतोष और धन्यवाद का मंत्र अपनाओ. इस मौके पर केशरिया वस्त्रों में इंद्रो ने मंत्रो के साथ कलशों से भगवान जिनेन्द्र का जलाभिषेक किया. मुनि को शास्त्र भेंट सम्माजजनों ने सामूहिक रूप से किया.