जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नर्सों की हड़ताल को अवैध घोषित कर दिया। इसी के साथ राज्य शासन को नर्सों की मांगों पर विचार के लिए कहा गया। इसके लिए चार सदस्यीय कमेटी गठित की गई है, जो एक माह में निर्णय लेकर रिपोर्ट पेश करेगी। सोमवार को इस मामले में नर्सेस एसोसिएशन की प्रदेश अध्यक्ष रेखा परमार को नोटिस जारी किया गया था।

वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार की ओर से जानकारी दी गई थी कि 50 प्रतिशत नर्सें काम पर लौट आई है। शेष हड़ताली नर्सों से बातचीत चल रही है। चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बैंच ने राज्य सरकार के जवाब को रिकार्ड पर लेते हुए मामले की अगली सुनवाई 7 जुलाई को नियत की थी। जबाब आने के बाद कोर्ट ने सख्त आदेश सुना दिया।

नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ. पीजी नाजपांडे और रजत भार्गव की ओर से जनहित याचिका दायर कर कहा था कि प्रदेश में पिछले एक सप्ताह से नर्सों की हड़ताल चल रही है। कोरोना काल में चल रही नर्सों की हड़ताल से मरीजों को परेशानी का सामना कर पड़ रहा है। अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने दलील दी कि नर्सों की हड़ताल को अवैध घोषित किया जाए। राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता आशीष आनंद बर्नाड ने बताया कि 50 प्रतिशत से अधिक नर्सें काम पर लौट आई है। शेष हड़ताली हड़ताली नर्सों से बातचीत चल रही है। बुधवार को कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया। विदित हो कि प्रदेश के अधिकांश जिलों में नर्सों की हड़ताल चल रही है।

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