भोपाल। मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के लिए 79 उम्मीदवारों की तीन लिस्ट जारी कर दी है। टिकट वितरण के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी बीजेपी के लिए चुनौती बन रही है। पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए जिन विधायकों के टिकट काटे हैं वे खुले तौर पर बगावत कर रहे हैं। बगावत करने वालों में कुछ ऐसे भी नेता हैं जो टिकट के लिए दावेदारी कर रहे थे। नेताओं की बगावत पार्टी के जातिगत संतुलन को बिगाड़ सकती है। इसका सबसे ज्यादा असर विंध्य क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। जहां अभी तक के सभी सर्वों में पार्टी को मजबूत दिखाया गया है।

पार्टी के लिए सबसे बड़ी समस्या विंध्य क्षेत्र में उभर कर सामने आ रही है। 2018 के विधानसभा चुनावों में विंध्य क्षेत्र में पार्टी को बड़ा फायदा हुआ था। 2018 में बीजेपी ने विंध्य क्षेत्र की 80 फीसदी सीटों पर जीत दर्ज की थी। एक अंग्रेजी वेबसाइट के अनुसार, 39 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी होने के बाद इस क्षेत्र में बीजेपी की बगावत तेज हो गई है।

त्तर प्रदेश से सटा है विंध्य का इलाका
एमपी का विंध्य इलाका उत्तरप्रदेश से सटा है। इस क्षेत्र में विधानसभा की 30 विधानसभा सीटें हैं। ब्राह्मण प्रभुत्व के साथ-साथ यहां दूसरी जातियों का भी अच्छा-खासा प्रभाव है। 2018 में बीजेपी ने यहां 24 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि कांग्रेस के खाते में केवल 6 सीटें आईं थीं। विंध्य क्षेत्र में बीजेपी ने सत्ता विरोधी लहर से इंकार किया है। विंध्य को फोकस करते हुए बीजेपी सरकार ने दो नए जिले मऊगंज और मैहर बनाए हैं। इसके अलावा, पूर्व मंत्री और क्षेत्र के प्रभावशाली नेता राजेंद्र शुक्ला को एक महीने पहले कैबिनेट में शामिल किया है।

विंध्य में तेज हुई बगावत
सीधी विधानसभा सीट से बीजेपी ने मौजूदा भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला को टिकट नहीं दिया गया है। टिकट कटने के बाद उन्होंने इस सीट से रीति पाठक के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। बीजेपी सूत्रों के अनुसार, पार्टी के पास सीधी सीट पर केदारनाथ शुक्ला को टिकट काटने का बड़ा आधार था। सीधी पेशाब कांड के बाद से शुक्ला की छवि धूमिल हुई थी। लगातार तीन बार यहां से चुनाव जीतने वाले केदार शुक्ला को अनुमान था कि जातिगत राजनीति को देखते हुए पार्टी उन्हें नजर अंदाज नहीं करेगी। शुक्ला का टिकट कटने के बाद पार्टी के कई कार्यकर्ता इस्तीफा दे चुके हैं।

बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं विधायक नारायण त्रिपाठी
केदार शुक्ला के अलावा विंध्य के दूसरे ब्राह्मण नेता और मैहर से मौजूदा विधायक नारायण त्रिपाठी का भी टिकट काट दिया है। उन्होंने अलग विंध्य राज्य के मांग करते हुए अपनी पार्टी बना ली है। इस इलाके को साधने के लिए बीजेपी सरकार ने मैहर को जिला बनाया है। वहीं, सतना विधानसभा सीट से स्थानीय सांसद गणेश सिंह की उम्मीदवारी पर असंतोष बढ़ रहा है। गणेश सिंह को टिकट मिलने के बाद बीजेपी के ब्राह्मण नेता रत्नाकर चतुर्वेदी ने पार्टी के खिलाफ हमला बोल दिया है। उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है।

बुंदेलखंड में भी बगावत
बीजेपी ने अपनी पहली लिस्ट अगस्त में घोषित की थी। 26 विधानसभा सीटों वाले बुंदेलखंड इलाके में भी बीजेपी के लिए मुश्किलें हैं। छतरपुर से पूर्व मंत्री ललिता यादव की उम्मीदवारी के खिलाफ पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मोर्चा खोल दिया है। पार्टी अभी तक वहां असंतोष को शांत नहीं कर पाई है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस इलाके में 10 सीटें जीतीं, कांग्रेस ने 14 और एक-एक सीट बसपा और सपा के खाते में गई थी।

भाजपा के पूर्व छतरपुर जिला अध्यक्ष घासीराम पटेल ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। वह राजनगर सीट पर अरविंद पटेरिया को उम्मीदवार बनाए जाने से नाराज थे। पटेल ने हाल ही में खजुराहो में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। पन्ना जिले से पूर्व बीजेपी विधायक महेंद्र बागरी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। बुंदेलखंड में लोधी और यादव समेत ऊंची जातियां के वोटर्स का राजनीति में अच्छा प्रभाव है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति के मतदाता हैं।

ग्वालियर-चंबल में भी मुश्किलें
जातिगत राजनीति के प्रभुत्व के लिए जाना जाने वाला एक अन्य क्षेत्र ग्वालियर-चंबल में भी पार्टी की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। यहां पर टिकट वितरण को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी के कारण सत्तारूढ़ दल को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भिंड क्षेत्र की गोहद सीट पर पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य की उम्मीदवारी पार्टी के एक वर्ग को रास नहीं आ रही है। गुना की चाचौड़ा सीट से पूर्व विधायक ममता मीना को पार्टी ने टिक नहीं दिया जिसके बाद उन्होंने आम आदमी पार्टी की सदस्यता ले ली