भोपाल। भोपाल। एक ओर जहांं केंद्र और राज्य सरकारें हर घर हर परिवार को शिक्षित करने की दिशा में अभियान चला रही है। हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार कानून तक बनाया गया, बच्चे इस कानून के आधार पर निजी स्कूल में पढऩे सुनहरा मौका मिला। पर करोड़ों रुपए फूंककर भी सरकारी स्कूलों की हालत नहीं सुधरी। अपने ही प्रयासों की विफलता से हारी शिवराज सरकार ने अब स्कूलों में सुधार करने के बजाय हजारों सरकारी स्कूल बंद करना ही सही समझा। यही कारण है कि शिक्षा विभाग ने अब कई सरकारी स्कूलों को बंद करने की तैयारी कर ली है।
दरअसल सरकारों का प्रयास रहा कि सरकारी स्कूलों की दशा और पढ़ाई की गुणवत्ता में सुधार लाकर बच्चों को पढऩे के लिए प्रेरित किया जाए। ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे शिक्षा ले सकें। नि:शुल्क शिक्षा और सबको शिक्षा के प्रयास फिर भी विफल ही रहे। बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार ने मध्याह्न भोजन तक की व्यवस्था की। मध्याह्न भोजन व्यवस्था शुरू करने के बाद भी बच्चों की संख्या में ज्यादा इजाफा नहीं हुआ। थोड़ी बहुत जो संख्या बढ़ी भी तो वो यह थी कि बच्चे यहां पढऩे के बजाय सिर्फ मध्यायह्न भोजन के लिए ही स्कूल आने लगे। लेकिन शिक्षा ग्रहण करने के नाम पर बच्चे मध्याह्न भोजन करने के बाद ही स्कूल से निकल जाते थे।
* अब स्कूल शिक्षा विभाग ने प्रदेश के ऐसे सरकारी स्कूलों का सर्वे शुरू करने का निर्णय लिया है जहां बच्चों की संख्या 20 से भी कम है।
* इस नए शिक्षण सत्र में कम बच्चों वाले ये प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल बंद कर दिए जाएंगे।
* बंद किए गए इन स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को आसपास के स्कूलों में शिफ्ट किया जाएगा।
* वहीं बंद किए गए स्कूलों के भवनों को आंगनबाउ़ी और पंचायत विभाग को किराए पर दिया जाएगा।
* इससे होने वाली आय से स्कूलों के संसाधन जुटाए जाने की योजना तैयार की जा रही है।
* आपको बता दें कि स्कूल शिक्षा विभाग ने अगले सत्र से 40 हजार शिक्षकों की भर्ती करने की घोषणा की थी। लेकिन अभी तक प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। जबकि वर्तमान में सवा लाख स्कूलों में 70 हजार शिक्षकों की कमी है।
* जिम्मेदारों का कहना है कि कम संख्या वाले स्कूलों को पंाच किमी के दायरे के स्कूलों में मर्ज करने का निर्णय लिया जा सकता है।
* विभाग का मानना है कि इस तरह शिक्षकों की कमी को दूर किया जा सकेगा और अन्य शिक्षा संसाधनों की पूर्ति की जा सकेगी।