जबलपुर। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व निर्देश पर सोमवार को राज्य शासन की ओर से शक्तिकांड को लेकर अपनी स्टेटस रिपोर्ट पेश कर दी गई। इसमें साफ किया गया कि राज्य में अब दुष्कर्म की शिकायत सामने आने पर पीड़िता की एमएलसी अविलंब होगी। इस संबंध में शासकीय अस्पतालों में स्टाफ को ट्रेनिंग दी जा रही है।

उन्हें त्वरित एमएलसी रिपोर्ट पेश करने और इस तरह के मामलों में अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशीलता से कार्य करने प्रेरित किया जा रहा है। इसके अलावा सभी पुलिस थानों में वर्दीधारियों को संवेदनशीलता और जागरुकता के पाठ पढ़ाए जा रहे हैं। शक्तिकांड के बाद से राज्य में अब तक पुलिस के 700 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं। वहीं महिला पुलिस गर्ल्स कॉलेजों में सक्रिय रहकर युवतियों को अपने बचाव के संबंध में जागरुकता अभियान संचालित कर रही है।

मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने अतिरिक्त महाधिवक्ता समदर्शी तिवारी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लेने के साथ ही मामले की अगली सुनवाई तीन माह बाद निर्धारित कर दी। इसमें राज्य की ओर से नए सिरे से पेश की जाने वाली अगली स्टेटस रिपोर्ट पर गौर किया जाएगा।

13 नवंबर 2017 को हाई कोर्ट ने लिया था संज्ञान

राजधानी भोपाल को दहला देने वाले शक्तिकांड को लेकर ‘नईदुनिया ने एक के बाद एक खबरें प्रकाशित की थीं। हाई कोर्ट ने घटना के एक सप्ताह के बाद गंभीरता बरतते हुए खबरों पर संज्ञान लेकर 13 नवंबर 2017 को जनहित याचिका के रूप में मामले की सुनवाई शुरू कर दी।

इसी के साथ शक्तिकांड में पुलिस और चिकित्सकों की घोर लापरवाही को आड़े हाथों लेकर रिपोर्ट पेश करने सरकार को निर्देश जारी किए गए। 27 नवंबर को राज्य की ओर से अपनी पहली रिपोर्ट पेश की गई जिसमें दोषी पुलिस अधिकारियों व चिकित्सकों के खिलाफ कदम उठाए जाने सहित अन्य कार्रवाई का ब्यौरा पेश किया गया। हाईकोर्ट ने उस रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लेकर सरकार को 8 जनवरी 2018 को स्टेटस रिपोर्ट पेश करने निर्देश दिए थे।

मुख्य आरोपियों को उम्रकैद, दोषी अधिकारियों व चिकित्सकों के खिलाफ डीई जारी

राज्य शासन की ओर से 8 जनवरी 2019 को प्रस्तुत फ्रेश स्टेटस रिपोर्ट में जानकारी दी गई कि शक्तिकांड के चारों मुख्य आरोपियों को ट्रायल कोर्ट से उम्रकैद की सजा सुनाई जा चुकी है। वहीं दोषी चिकित्सकों व पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच (डीई) शुरू कर दी गई है।

एफआईआर में देरी से साक्ष्यों पर नहीं पड़ा विपरीत प्रभाव

राज्य शासन की रिपोर्ट में यह निरीक्षणपरक तथ्य भी रेखांकित हुआ कि पुलिस द्वारा एफआईआर में देरी के बावजूद शक्तिकांड में आरोपियों को सजा दिलाने के लिए ठोस आधार बने साक्ष्यों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा।

डॉ.सुरभि पोरवाल का जवाब संतोषजनक नहीं, इसलिए डीई

ताजा स्टेटस रिपोर्ट में साफ किया गया कि शक्तिकांड में लापरवाही के आरोपी चिकित्सकों के खिलाफ विभागीय जांच तब की गई, जब जवाब संतोषजनक नहीं पाए गए। डॉ.सुरभि पोरवाल का जवाब पिछले दिनों असंतोषजनक रूप से सामने आने पर उनके खिलाफ भी डीई शुरू कर दी गई है। यही तरीका लापरवाही के आरोपी पुलिस अधिकारियों के मामले में भी अपनाया गया है।

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