भोपाल। मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर मंगलवार को हुए उपचुनाव के 10 नवंबर को आने वाले परिणाम न केवल प्रदेश की भाजपा नीत सरकार के भाग्य का फैसला करेंगे, बल्कि प्रदेश के तीन क्षत्रपों- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और नेता नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया असर राजनीतितक भविष्य पर भी असर पड़ेगा। इस साल मार्च में राज्य में सत्ता के लिए जो राजनीतिक उठापटक हुई थी, उसमें ये तीनों प्रभावशाली नेता शामिल थे। इस उठापटक में कमलनाथ के नेतृत्व वाली 15 महीने पुरानी कांग्रेस नीत सरकार गिराने में सिंधिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, क्योंकि सिंधिया के मार्च में कांग्रेस छोड़ भाजपा में आने के बाद उनके साथ कांग्रेस के 22 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता लेने का प्रस्ताव दिया था और भाजपा में शामिल हो गए थे।
इससे कम पूर्णनाथ की तत्कालीन सरकार अल्पमत में आ गई थी, जिसके कारण कमलनाथ ने 20 मार्च को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और इसके बाद चौहान के नेतृत्व में 23 मार्च को फिर से भाजपा की सरकार बनी। भाजपा में आने के बाद सिंधिया इस साल जून में मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य बने हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा में आने के बाद से ही पूर्व में केंद्रीय मंत्री रह चुके सिंधिया की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार में भी मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा है। जब सिंधिया कांग्रेस में थे, तब 2018 में प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद वह कमलनाथ से मुख्यमंत्री पद की दौड़ में पिछड़ गए थे। इसके अलावा, उन्हें कमलनाथ के स्थान पर प्रदेश अध्यक्ष भी नहीं बनाया गया।
कांग्रेस द्वारा दरकिनार किए जाने से सिंधिया का राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ गया। इससे सिंधिया पार्टी से निराश थे और उनकी इस हताशा को भांपकर भाजपा ने इस अवसर को मौके में बदलकर फायदा उठाया और सिंधिया और उनके बागी समर्थकों के सहयोग से लगभग सात महीने पहले सत्ता में फिर से वापसी की। राजनीतितक विशेषज्ञों का कहना है कि यदि चौहान के नेतृत्व में भाजपा उपचुनाव में इन 28 सीटों में से 15 से अधिक पर जीत दर्ज कर लेती है तो पार्टी में उनकी कद और भी बढ़ जाएगी। चौहान अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आते हैं और प्रदेश में इस वर्ग की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक है।
कांग्रेस ने कहा कि मार्च में भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने चौहान को चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का दायित्व दिया था, क्योंकि जनता में उनकी छवि अच्छी है। माना जाता है कि जनता के चहेते नेता होने के कारण वह उपचुनाव में पार्टी को और अधिक से जितवाकर 230 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के जादुई आंकड़े 116 को पार करवा सकते हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि जब चौहान ने अपने लिंग का गठन किया, तो इसके लिए उन्हें पूरी तरह से छूट नहीं दी गई थी और इसके लिए उन्हें पार्टी के आला नेताओं से सलाह मशविरा करने के लिए कई दफा भोपाल से नई दिल्ली आना-जाना पड़ा।
मध्य प्रदेश विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। इनमें से वर्तमान में भाजपा के 107 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के घटकर 87 हो गए हैं। उनके अलावा, चार निर्दयी, दो बसपा और एक सपा विधायक हैं। बाकी 29 सभाएँ रिक्त हैं, जिनमें से दमोह विधानसभा को छोड़कर 28 सीटों पर तीन नवंबर को उपचुनाव हो गए हैं और इनका परिणाम 10 नवंबर होगा। दमोह सीट पर उपचुनाव की तिथि घोषित होने के बाद कांग्रेस विधायक राहुल सिंह लोधी ने विधानसभा की सदस्यता एवं कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए। इन 28 सीटों पर उपचुनाव के परिणाम आने के बाद सदन में विधायकों की संख्या वर्तमान 202 से बढ़कर 229 हो जाएगी। इसलिए भाजपा को बहुमत के 115 के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए इस उपचुनाव में केवल आठ सीटों को जीतने की जरूरत है, जबकि कांग्रेस को पूरी तरह से 28 सीटों की जीत होगी।
राजनीति और का अनुमान है कि चौहान के लिए बहुमत के 115 के जादुई आंकड़े पर पहुंचना आसान है। लेकिन किसी कारण से अगर वह इस आंकड़े तक नहीं पहुंच पाते, तो पार्टी में चल रहा विरोध का सुर और तेज हो सकता है और इससे केंद्रीय नेतृत्व को उनके कद को कम करने का मौका मिल सकता है। ठीक इसी तरह से मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी यदि इस उपचुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर पाने में सफल रहते हैं तो पार्टी में उनकी जगह कायम रहेगी। लेकिन अगर वह ऐसा करने में असफल रहता हैं तो उन्हें भी आने वाले समय में पार्टी नेताओं से ऐनकों मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे अन्य राष्ट्रीय स्टार प्रचारकों के इस उपचुनाव में प्रचार न करने की वजह से उन्होंने स्वयं अपनी पार्टी की प्रचार की कमान संभाली और मतदाताओं को रिझाने के लिए अपने प्रत्याशियों के पक्ष में तांत्रिकों को प्रचार किया।