राजस्थान और मध्य प्रदेश में अभी चुनाव बाकी हैं, लेकिन सीएम की कुर्सी के लिए नेताओं के बीच उठापटक ने कांग्रेस की मुश्किल बढ़ा दी है। राजस्थान में एक तरफ अशोक गहलोत हैं तो दूसरी ओर सचिन पायलट भी लगातार अपनी दावेदारी ठोकने के संकेत दे रहे हैं। मध्य प्रदेश की बात करें तो वहां ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछड़ते दिख रहे हैं और पुराने दिग्गज कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के गुटों में पार्टी बंटी नजर आ रही है।
यही वजह है कि मध्य प्रदेश में सीएम बनने का सपना देख रहे युवा नेता ज्योतिरादित्य और राजस्थान में पार्टी की जीत पर कुर्सी की आस लगाए सचिन पायलट के लिए राह मुश्किल दिख रही है। बता दें कि बुधवार को राजस्थान में उस वक्त सियासी हलचल तेज हो गई, जब पार्टी के संगठन महासचिव अशोक गहलोत ने कहा कि वह और प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट दोनों चुनाव मैदान में उतरेंगे। इस बयान की काफी अहमियत है क्योंकि गहलोत और पायलट को कांग्रेस की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि दोनों ने कभी खुलकर अपनी दावेदारी पेश नहीं की है, किंतु मुख्यमंत्री के सवाल को लेकर इनके समर्थकों की तरफ से समय-समय पर बयान आते रहे हैं।
दरअसल, राजस्थान में गहलोत के साथ ही मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को पार्टी के आंतरिक समीकरण में मजबूती मिलती दिख रही है। पार्टी के भीतर भी यह माना जा रहा है कि विधानसभा चुनावों के दौरान दोनों ही राज्यों में इन वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी अहम होगी। बताया जा रहा है कि राजस्थान में कांग्रेस के कई नेताओं ने आलाकमान तक यह बात भी पहुंचाई कि गहलोत के चुनाव मैदान में नहीं होने से पार्टी को खासा नुकसान हो सकता है।
गहलोत का समर्थन कर रहे नेताओं ने पार्टी हाईकमान से यह भी कहा है कि चुनावों में जीत के लिए यह जरूरी है कि जो भी उम्मीदवार (गहलोत भी शामिल) जीतने की क्षमता रखता है। माना जा रहा है कि ऐसे में अब सचिन पायलट के पास सिर्फ यही विकल्प बच गया है कि वह या तो अजमेर से कोई सीट चुनाव के लिए चुन लें या फिर किसी सुरक्षित सीट के लिए प्रतिद्वंदी खेमे से समझौता करें।