ग्वालियर। प्रसिद्ध भागवत कथा वाचक आचार्य अरविंद जी महाराज ने कहा है कि मां का दूध ही बच्चे के लिये श्रेयस्कर होता है। उन्होंने कहा कि मां के दूध में जो ताकत होती है वह डिब्बों के बोतल के दूध में नहीं होती। आचार्य अरविंद जी महाराज अचलेश्वर बिहार पार्क में चल रही संगीतमय श्रीमद भागवत कथा के पांचवे दिन आज बाल कृष्ण की लीलाओं गोवर्धन पर्वत उठाने की कथाओं के साथ धमार्थ श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे।
आचार्य श्री अरविंद जी महाराज ने कहा कि आज महिलाएं बच्चों को शुरू से ही बोतल मुंह मेंं लगाकर दूध का सेवन कराती हैं। ऐसे बच्चे जहां आगे चलकर सुरा की बोतल को थामते हैं , या फिर बीमार रहकर चिकित्सक के पास जाकर भी बोतल से ही लगे रहते हैं। उन्होंने महिलाओं से आवहान किया कि वह अपने बच्चों को स्तन पान ही करायें । उन्होंने बाल कृष्ण लीलाओं का उदाहरण देते हुये कहा कि बालकृष्ण ने भी मां का दूध का ही सेवन किया था। तभी वह बलिष्ठ भी थे और हर प्रकार की बाधाओं को स्वयं ही निबटाते थे। उन्होंने माता अंजनी और हनुमान की कथा सुनाते हुये कहा कि लंका पर विजय प्राप्त कर भगवान श्रीराम भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान के साथ ही सभी वानर सेना को लेकर पत्नी सीता के साथ लौट रहे थे । तभी हनुमान ने विनयपूर्वक श्रीराम से निवेदन किया प्रभु ! माता जी के दर्शन हुए अधिक दिन बीत गए । यदि आज्ञा हो तो मैं उनके चरणों का स्पर्श कर आऊं ।
श्री रघुनाथ जी ने हर्षोल्लास पूर्वक हंसते हुए कहा और हम लोग माता जी के दर्शन से वंचित ही रहेंगे क्या
प्रभु की आज्ञा पाकर विमान अयोध्या पथ से हटकर कांचनगिरी पहुंच गये। हनुमान जी के साथ स्वयं जगत जननी जानकी और परम प्रभु श्रीराम सबके साथ उतर पड़े । माता का दर्शन होते ही हनुमान जी दौडक़र अबोध शिशु की भांति उनके चरणों में गिर पड़े । उनका कंठ अवरुद्ध सा हो गया था । नेत्रों से आंसू बह चले । उन्होंने बड़ी कठिनाई से कहा मां माता अंजना उनका लाल उनका प्राणखण्ड कितने दिनों बाद मिला था । वे सजल नेत्रों से हनुमान जी के सिर पर अपना हाथ फेरने लगीं । पुत्र को आशीर्वाद तो उनका रोम – रोम दे रहा था ।
उसी समय वहां श्री सीता और लक्ष्मण सहित प्रभु भी पहुंच गये । मां ! ये मेरे प्राणनाथ प्रभु और ये माता जानकी तथा ये सौमित्री हैं । हनुमान जी ने उनका परिचय दिया । स्वयं परमप्रभु को अपने द्वार पर देख माता अंजना अत्यंत प्रफुल्लित हो उठी ,उन्होंने हनुमान जी से कहा .बेटा ! कहते हैं पुत्र माता से कभी उऋृण नहीं हो पाता, किंतु तू मुझसे उऋृण हो गया । तूने अपना जीवन और जन्म तो सफल कर ही लिया, तेरे कारण मेरे भाग्य पर बड़े से बड़े सुर – मुनि पुंगवों को भी ईष्र्या हो सकती है ।
हनुमान जी ने माता अंजना के चरण दबाते हुए कहा मां ! इन करूणामूर्ति माता सीता को दशानन हर ले गया था । इन्हीं की कृपाशक्ति से मैंने समुद्र पार जाकर लंका में माता जी का पता लगाया । फिर प्रभु ने समुद्र पर पुल बंधवाया और लंका में राक्षसों के साथ भयानक संग्राम किया । मेघनाद, कुम्भकर्ण और रावण जैसे प्रख्यात दुर्जय वीरों का प्रभु ने वध किया और फिर विभीषण जी को लंका के राज्य पदपर अभिषिक्त कर माता जानकी के साथ अयोध्या पधार रहे हैं ।
हनुमान जी के वचन सुनते ही माता अंजना ने कुपित होकर उन्हें अपनी गोद से ढकेल दिया । उनके नेत्र लाल हो गये । उन्होंने क्रोधपूर्वक कहा . तूने व्यर्थ ही मेरी कोख से जन्म लिया । मैंने तुझे व्यर्थ ही अपना दूध पिलाया । क्या तुझमें इतनी शक्ति नहीं थी कि तू लंका में प्रवेश करने पर त्रिकूट पर्वत को उखाड़ कर समूची लंका को समुद्र में डूबा देता ।
तूने मेरे दूध को लज्जित कर दिया । धिक्कार है तुझे, तेरे होते हुए परम प्रभु को सेतु . बंधन एवं राक्षसों से युद्ध करने का कष्ट उठाना पड़ा । अब तू मुझे अपना मुंह मत दिखाना ।
हाथ जोड़े हनुमान जी ने कहा . मां ! मैंने तेरे दूध को कभी लज्जित नहीं किया और न ही भविष्य में तेरे महिमामय दूध को कभी आंच ही आएगी । मैं तो अपने प्रभु की सेवा के लिए केवल उनकी आज्ञा का पालन करना ही अपना प्रमुख कर्तव्य मानता हूं और मैं उनकी कीर्ति और लीला में व्यवधान नहीं डालना चाहता था । इस बात पर श्रीरघुनाथ जी ने भी अनुमोदन किया, तब जाकर कहीं माता अंजना का गुस्सा शांत हुआ और वे बोली,आप समझ रहे हैं कि यह बुढय़िा बार- बार अपने दुग्ध का क्या गुणगान कर रही है । उन्होंने कहा मेरा दूध असाधारण है । आप स्वयं देख लीजिए ।
माता अंजना ने अपने स्तनों को दबाकर दुग्ध की धार समीपस्थ पर्वत . शिखर पर छोड़ी । फिर तो जैसे वज्रपात हो गया । भयानक शब्द के साथ वह पर्वत फटकर दो भागों में विभक्त हो गया ।
माता अंजना ने अंत में कहा . मेरा यहीं दूध हनुमान ने पिया है । मेरा दूध कभी व्यर्थ नहीं जा सकता ।
उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं जब दो युवाओं में लडाई होती है तो वह भी कहता है कि तूने मां का दूध पिया है तो आ लड़।
आचार्य अरविंद जी महाराज ने एक कथा सुनाते हुये कहा कि एक बार बाल कृष्ण ने सभी गोपियों की मटकी को फोड दिया। उसके बाद सभी गोपियां माता यशोदा के पास बाल कृष्ण की शिकायत लेकर गई। उन्होंने कहा कि वैसे गोपियां नहीं भी जाती लेकिन बाल कृष्ण इतने चंचल थे कि गोपियां उन्हें देखने के लिये लालायित रहमी थी और वह कोई भी मौका छोडना नहीं चाहती थी। इसी के बाद वह शिकायत करने उनके घर जा पहुंची वह भी एक झलक बाल कृष्ण की पाने को।
अरविंद जी महाराज ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने जहां इन्द्र का दंभ तोडने को गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया वहीं उन्होंने ऐसा करके विश्व को एक पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया।
कल रविवार २७ मार्च को महारास एवं श्रीकृष्ण रूकमणी विवाह की कथा होगी। आज की कथा में आरती स्थानीय लोगों मुख्य परीक्षित विजय मीरा गुप्ता सहित अन्य लोगों ने की।