भोपाल। कोरोना में अपने माता-पिता को खो चुकी भोपाल की 16 साल की टॉपर वनिशा पाठक। उसने अपनी भावनाएं कुछ इस तरह शब्दों से बयां करने की कोशिश की है। महामारी में माता-पिता को खो दिया, लेकिन जज्बा नहीं खोया। वनिशा बताती हैं कि जब मां और पापा अस्पताल में जिंदगी-मौत की जंग लड़ रहे थे, उस दौरान भी वह घर पर पढ़ाई के साथ 10 साल के छोटे भाई विवान को संभाले हुए थी। उसने हिम्मत नहीं हारी थी। सभी परेशानियों और तकलीफों को पार करते हुए उसने बीएससीई 10वीं बोर्ड में 99.8% अंकों के साथ टॉप किया है। इस सफलता पर प्रधानमंत्री आॅफिस (पीएमओ) से फोन पर बधाई दी गई। हालचाल भी जाना। अशोका गार्डन में रहने वाली वनिशा के पिता जितेंद्र पाठक प्राइवेट जॉब करते थे, जबकि उनकी मां डॉक्टर सीमा पाठक सरकारी स्कूल में संविदा शिक्षक थीं। दोनों बच्चे अपने मामा प्रोफेसर अशोक शर्मा के संरक्षण में हैं। प्रो. शर्मा भोपाल के एमव्हीएम कालेज में कार्यरत हैं। दोनों बच्चों का भविष्य संभवारने के लिये प्रदेश का हर संस्थान आगे आ रहा है।

वनिशा कहती हैं… पापा का ड्रीम आईआईटी और मम्मी एडमिनिस्ट्रेटिव आॅफिसर बनता देखना चाहती थीं। अब दोनों नहीं हैं, तो दोनों के सपने पूरे करना चाहती हूं। मम्मी और पापा अप्रैल में एक ही दिन हॉस्पिटलाइज हो गए थे। उन्हें कोरोना हो गया था। कभी बात होती थी, कभी नहीं होती थी। उस दौरान घर पर मैं सिर्फ अपने छोटा भाई विवान के साथ रह रही थी। मम्मी-पापा से जब बात होती थी, तो वे कहते थे कि वे जल्द ही ठीक होकर घर आ जाएंगे। तुम दोनों एक-दूसरे का ख्याल रखना है।

मम्मी से आखिरी बार 2 मई को बात हुई थी। उन्होंने कहा था, बेटा विश्वास और हिम्मत रखना। सभी लोग ठीक होकर आते हैं, मैं भी आ जाऊंगी। उसके बाद, उनसे कभी बात नहीं हो सकी। पापा से 10 मई को बात हुई। उन्होंने कहा, बेटा तुमने बहुत हिम्मत रखी है, थोड़ी और रखना। मैं और मम्मी जल्द ही लौटेंगे। उनकी डेथ होने पर पता चला कि मम्मी की पहले ही डेथ हो चुकी थी। तब मैं पढ़ाई के साथ भाई का ध्यान रखती थी।

मम्मी-पापा के जाने के बाद उस समय कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन मम्मी-पापा ने सीख दी थी कि जिंदगी में उतार और चढ़ाव आते रहते हैं। अच्छा समय हो, तो उसे एंजॉय करो, डाउन है तो संघर्ष करो। अब मैं उन्हीं के कदमों पर चलने की कोशिश कर रही हूं। मेरा सपना आईआईटी से बीटेक करने का है। यूपीएससी भी करूंगी। अभी मैं अपने मामा अशोक शर्मा के साथ शिवाजी नगर में रह रही हूं।

उस दौर की चर्चा करना भी मुमकिन नहीं
वनिशा कहती हैं कि उस दौरान कुछ समझना भी बहुत मुश्किल होता था। मेरा ज्यादा ध्यान पढ़ाई पर ही रहता था। पापा-मम्मी मुझसे ज्यादा कुछ काम नहीं करवाते थे, इसलिए घर के कागजात और दूसरी चीजों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। इमोशनली बहुत तनाव में थी। उनकी डेथ के बाद डॉक्यूमेंटेशन और डेथ सर्टिफिकेट के लिए काफी परेशान होना पड़ा, क्योंकि मुझे कुछ भी पता नहीं था।

बुआ ने आकर हमें संभाला। मामा ने सब कुछ किया। शायद वह समय और भी ज्यादा पेनफुल था, क्योंकि उस दौरान अपने आप को संभालना, भाई का ध्यान रखना। इसी दौरान फॉर्मेलिटी पूरी करना। सब कुछ हमारे लिए मुश्किल भरा रहा। अब मैं इससे आगे निकल चुकी हूं। मेरा उद्देश्य मम्मी-पापा के सपनों को पूरा करना है।

मामा बोले- ढटड ने वनिशा से बात की
वनिशा के मामा अशोका शर्मा ने बताया, उस दौरान बच्चों ने अकेले ही संघर्ष किया। हम भी संक्रमित थे। चाह कर भी उनकी मदद नहीं कर पा रहे थे। ठीक होने के बाद दोनों बच्चों को घर ले आया। दो महीने से दोनों बच्चे मेरे पास ही हैं। कोविड योजना के तहत अनाथ हुए बच्चे होने के कारण काफी खानापूर्ति करना पड़ी।

बच्चों के पास कुछ जानकारी नहीं होना और हमारे पास दस्तावेज नहीं होने से परेशानी हुई। हाल में बच्चों को कोविड योजना के तहत 5-5 हजार रुपए मिले हैं। ढटड आॅफिस से भी फोन आया था। उन्होंने वनिशा से बात की थी। उन्होंने उसका हालचाल जाना। कहा- कोई परेशानी हो, तो वह सीधे संपर्क कर सकती है। मेरा पूरा ध्यान बच्चों की पढ़ाई पर है, ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

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