दमोह। आज गणेश चतुर्थी का पर्व है पूरे देश के साथ जिले में भी यह पर्व हषोल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन कोरोना महामारी के बीच लोगों को इस साल अपने अपने घरों में ही भगवान गणेश की पूजा अर्चना करनी होगी और ज्यादा बड़ी मूर्तियों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया गया है जिसके कारण इस बार सभी लोग घरों पर ही छोटी छोटी मूर्ति रखेंगे और स्थापना करेंगे और दस दिन तक गणेश भगवान की भक्ति में सभी श्रद्धालु डूबे रहेंगे वहीं इस बार गणेश मंदिरों में भी पांच लोगों से ज्यादा लोग शामिल नहीं होगे साथ ही प्राचीन गणेश मंदिरों में भी बहुत कम श्रद्धालु पहुंचेंगे वैसे तो जिले में कई प्राचीन गणेश मंदिर है और सबका अपना अपना महत्व है लेकिन दमोह जिले के तेन्दूखेड़ा विकासखंड अंतर्गत आने वाले तेजगढ़ में स्थापित गणेश प्रतिमा अपने आप में दुर्लभ है भगवान की कई भुजाएं हैं और इस प्रकार की मूर्ति शायद कहीं और देखने नहीं मिल सकती है।
500 वर्ष प्राचीन है भगवान गणेश की प्रतिमा
तेजगढ़ में विराजमान अष्टभुजा प्रतिमा के बारे में वृद्ध मुन्ना कोरी बट्टू यादव श्याम सुंदर यादव राजकुमार साहू आदि ने बताया कि यह मंदिर एतिहासिक है और प्रतिमा काफी प्राचीन है जिसकी जानकारी उन्हें भी बुजुर्गों से मिली है ग्राम के लोगों द्वारा बताया गया है कि 500 साल पहले ओरछा से हरदोल का जन्म हुआ था और उसी समय राजा तेजी सिंह का भी जन्म हुआ और उन्हीं के राज में यह प्रतिमा स्थापित है तेजगढ़ में 70 वर्ष से ग्रामीण क्षेत्रों में गणेश प्रतिमाएं स्थापित होने लगी है नहीं तो तेजगढ़ सहित आसपास के 50 गांव में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं होती थी भगवान गणेश के मंदिर के पास ही एक प्रतिमा स्थापित की जाती थी जो रस्म आज भी चली आ रही है आज भले ही क्षेत्र में कई स्थानों पर गणेश प्रतिमाओं की स्थापना होने लगी है लेकिन तेजगढ़ मंदिर में पूजा आज भी उसी पुराने रीति रिवाज के अनुसार होती है जनवरी माह में तिलया गणेश के अवसर पर मंदिर में विशेष पूजा होती है.
मंदिर से नीचे जाने लगी थी प्रतिमा
गणेश प्रतिमा की स्थापना के बारे में तो गांव का कोई भी व्यक्ति नहीं बता पा रहा है लेकिन जो नए मंदिर निर्माण के लिए समिति बनी है उसमें तेजगढ़ के गणमान्य लोगों की अहम भूमिका है शिक्षक महेंद्र दिक्षित ने बताया कि भगवान गणेश की स्थापना राजा तेजी सिह ने की थी इस प्रकार की जानकारी ग्रथों में है 80 वर्ष पहले प्रतिमा मंदिर के नीचे की ओर धसने लगी तब फतेहपुर गांव के कोई संत यहां आए थे इसके बाद प्रतिमा को बाहर निकाला गया प्रतिमा के ऊपर काफी बड़ी मात्रा में सिंदूर निकला था जिसे नर्मदा में बहाया गया था और फिर सभी के सहयोग से नए मंदिर का आकार दिया गया जो काफी विख्यात है.
अष्टभुजा रुप में विराजमान हैं भगवान गणेश
तेन्दूखेड़ा मुख्यालय से 22 किमी दूर तेजगढ़ गांव में भगवान की अति प्राचीन प्रतिमा मंदिर में स्थापित है यहां भगवान अष्टभुजा के रूप में विराजमान हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी कर रहे हैं आज तक इस प्रतिमा के बारे में कोई पता नहीं लगाया कि आखिर यह प्रतिमा यहां कैसे आई गांव के बुजुर्गों की अपनी अपनी अलग अलग राय है वृद्ध कहते हैं कि उनके पूर्वजों ने उन्हे बताया कि यहां भगवान गणेश की अष्टभुजा प्रतिमा 500 वर्ष पूर्व जमीन के नीचे से प्रकट हुई थी जिसे तेजगढ़ के राजा तेजी सिंह ने गणेश घाट के समीप स्तापित कराया था उसी समय से उस घाट का नाम भी गणेश घाट पड़ गया इसके साथ तेजगढ़ गांव को भी राजा तेजी सिंह ने ही बसाया था.
दुर्लभ है गणेश प्रतिमा
वृद्ध बताते हैं कि तेजगढ़ में जो अष्टभुजा के रुप में भगवान गणेश की प्रतिमा स्तापित है वैसी प्रतिमा दूसरी कहीं और देखने नहीं मिलेगी इसका प्रमाण यह है कि गूगल पर जब भगवान गणेश की प्राचीन प्रतिमा खोजते हैं तो तेजगढ़ में स्थापित प्रतिमा आती है.