ग्वालियर – ब्रिज विहार कॉलोनी नई सड़क में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन दिन शनिवार को सुप्रसिद्ध भागवताचार्य श्री घनश्याम शास्त्री जी महाराज ने कहा कथा सुनने से मानव जीवन में संस्कार का उदय होता है जीवन में कितनी भी विकट परिस्थिति क्यों न आ जाए मुनष्य को अपना धर्म व संस्कार नहीं छोड़ना चाहिए ऐसे ही मनुष्य जीवन के रहस्य को समझ सकते हैं कहा कि जिसकी भगवान के चरणों में प्रगाण प्रीति है,वही जीवन धन्य है ईश्वर ने विभिन्न लीलाओं के माध्यम से जो आदर्श प्रस्तुत किया,उसे हर व्यक्ति को ग्रहण करना चाहिए ऐसा करने से जीवन मूल्यों के बारे में जानकारी मिलने के साथ-साथ अपने कर्तव्य को भी समझा जा सकता है
मनुष्य स्वंय को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें,क्योंकि भक्ति भाव देख कर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है तो वे सब कुछ छोड़ कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौड़े चले आते है गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है,जब कि संत सद्भाव में जीता है यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ संतोष सबसे बड़ा धन है उन्होंने बताया भगवान श्रीकृष्ण की सिर्फ 8 पत्नियां थी जिनके नाम रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा था. पुराणों के अनुसार कृष्ण की 1 लाख 61 हजार 80 पुत्र इतना ही नहीं, उनकी सभी स्त्रियों के 10-10 पुत्र और एक-एक पुत्री भी उत्पन्न हुई उन्होंने कहा श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन श्रीकृष्ण भक्त एवं बाल सखा सुदामा के चरित्र का वर्णन,श्रीमद्भागवत तथा श्रीव्यास पूजन किया कथावाचक शास्त्री जी ने कथा के दौरान श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सुदामा के आने की खबर पाकर किस प्रकार श्रीकृष्ण दौड़ते हुए दरवाजे तक गए थे पानी परात को हाथ छूवो नाहीं,नैनन के जल से पग धोये श्री कृष्ण अपने बाल सखा सुदामा की आवभगत में इतने विभोर हो गए के द्वारका के नाथ हाथ जोड़कर और अंग लिपटाकर जल भरे नेत्रों से सुदामा का हालचाल पूछने लगे उन्होंने बताया कि इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में कभी धन दौलत आड़े नहीं आती है सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया ‘स्व दामा यस्य स: सुदामा अर्थात अपनी इंद्रियों का दमन कर ले वही सुदामा है सुदामा की मित्रता भगवान के साथ नि:स्वार्थ थी, उन्होने कभी उनसे सुख साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की,लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए, चावलों में भगवान श्री कृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सब कुछ प्रदान कर दिया भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा मे सुदामा चरित्र का वाचन हुआ तो मौजूद श्रद्धालुओं के आखों से अश्रु बहने लगे उन्होंने कहा श्री कृष्ण भक्त वत्सल हैं सभी के दिलों में विहार करते हैं जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध ह्रदय से उन्हें पहचानने की है अंत मे खेली गई फूलों की होली श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन सुदामा चरित्र की कथा सुनकर एवं कृष्ण एवं सुदामा के मिलन की झांकी का द्रश्य देख कथा स्थल में मौजूद समस्त भक्तगण भाव विभोर हो गए। कथा के अंत में फूलों की होली व शुकदेव विदाई का आयोजन किया गया श्रीमद भागवत कथा पंडाल में हजारों श्रदालु,भक्त,संत महात्मा,आदि मौजूद रहे परीक्षित अशोक सक्सेना जी, महंत दिलीप महाराज,अध्यक्ष कमल मखिजानी,सतीश बौहरे सुरेंद्र शर्मा, पवन भटनागर अनूप श्रीवास्तव रॉबिन सक्सेना ,सचिन सक्सेना अमन सक्सेना राज दंडोतिता हरिओम शर्मा संजय कौरव मौजूद रहे