नई दिल्‍ली । प्रोबेशनरी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर अपनी मनमानी की वजह से दिनों सुर्खियों में हैं। अब उनकी नौकरी पर भी खतरा मंडराने लगा है। वह अपनी विकलांगता और ओबीसी सर्टिफिकेट को लेकर भी विवादों में घिर चुकी हैं। पूरे मामले की जांच के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक पैनल का गठन किया गया है। पैनल को अगर इसके साक्ष्य मिल जाते हैं तो उन्हें नौकरी से बर्खास्त तक किया जा सकता है। इसके अलावा उनके खिलाफ जालसाजी का मुकदमा भी चलाया जा सकता है।

रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया कि डीओपीटी के अतिरिक्त सचिव मनोज द्विवेदी का पैनल अगले दो हफ्तों में इस बात की जांच करेगा कि उन्होंने अपनी विकलांगता और ओबीसी स्टेटस को साबित करने वाले दस्तावेज कैसे हासिल किए। क्या जारी करने वाले अधिकारी ने उचित जांच की थी।

डकर के बारे में कहा जाता है कि वे अपनी विकलांगता की पुष्टि के लिए एम्स दिल्ली में अनिवार्य मेडिकल टेस्ट में उपस्थित होने से बार-बार इनकार कर देती हैं। उन्होंने पीडब्ल्यूबीडी की श्रेणी में आईएएस रैंक हासिल की थी।

एक सूत्र का कहना है, “पैनल अपने निष्कर्षों को डीओपीटी को सौंपेगा। फिर महाराष्ट्र सरकार को सिफारिशों के साथ रिपोर्ट भेजेगा। खेडकर को महाराष्ट्र कैडर आवंटित किया गया है। अगर उन्हें अपने ओबीसी और विकलांगता के कागजात में जालसाजी करने का दोषी पाया जाता है, तो राज्य सरकार उन्हें बर्खास्त कर सकती है। इसके अलावा उन्हें जालसाजी के आरोप में मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है।”

खेडकर के दावों की जांच कर रहा डीओपीटी पैनल उनके ओबीसी दर्जे की पुष्टि करने के लिए सामाजिक न्याय मंत्रालय की मदद ले सकता है। वह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से होने का दावा करती हैं, लेकिन उनके पिता द्वारा दायर हलफनामे में उनकी संपत्ति 40 करोड़ रुपये से अधिक बताई गई है। वह एक पूर्व नौकरशाह हैं और हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार थे। हलफनामे में खेडकर को करोड़ों रुपये के फ्लैट और प्लॉट का मालिक दिखाया गया था।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि यह पहला मामला नहीं है जब सिविल सेवा के इच्छुक उम्मीदवार ने पीडब्ल्यूबीडी श्रेणी में चयन के लिए गलत विकलांगता का दावा किया हो। उन्होंने कहा कि लगभग हर साल ऐसे मामले सामने आते हैं जब झूठे विकलांगता दावों के आधार पर चुने गए लोग एम्स दिल्ली में अनिवार्य मेडिकल टेस्ट से बचते हैं।