जबलपुर.   राहुल गांधी की अगुवाई में दक्षिण भारत से शुरू हुई कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ मध्य प्रदेश से उत्तर भारत में प्रवेश करेगी. नवम्बर के अंतिम सप्ताह या दिसंबर के पहले सप्ताह में यात्रा के एमपी बॉर्डर में आने की संभावना है. राजनीतिक दृष्टिकोण से देखे तो राहुल गांधी की यह यात्रा एमपी में लोकसभा की पांच और विधानसभा की 26 सीटों को कवर करेगी. मध्य प्रदेश में यात्रा की तैयारियों को प्रभारी महासचिव जे पी अग्रवाल देख रहे हैं लेकिन इसकी सफलता का सारा दारोमदार पीसीसी चीफ कमलनाथ पर है.

एमपी में तैयारियां तेज
कांग्रेस प्रवक्ता राजा पांडेय के मुताबिक नवम्बर के आखिरी या दिसंबर के शुरुआती सप्ताह में यात्रा के मध्य प्रदेश में प्रवेश करने की संभावना है. मध्य प्रदेश में दो हफ्तों तक चलने वाली इस यात्रा में प्रतिदिन 25 किलोमीटर का सफर तय किया जाएगा. फिलहाल भारत जोड़ो यात्रा के मार्ग में मंच बनाए जाने के लिए जगह चिह्नित किए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि इन स्थानों का चयन करके यात्रा प्रभारी को सूची पीसीसी चीफ कमलनाथ देंगे. कमलनाथ खुद प्रत्येक स्थान पर पहुंचकर जायजा लेंगे, उसके बाद सूची फाइनल करेंगे. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक राज्य प्रभारी जेपी अग्रवाल भी यात्रा वाले जिलों में जाकर खुद तैयारियों का जायजा लेंगे. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कांग्रेस की योजना इस यात्रा के जरिए राजनीतिक रूप से अपनी जमीन मजबूत करने की है.

क्या 26 विधानसभा सीटों पर होगा असर?
अगर बात करें मध्य प्रदेश में यात्रा के प्रभाव कि तो कांग्रेस की नजर पांच लोकसभा सीट पर है. इन पांचों सीटों खंडवा, खरगोन, इंदौर, उज्जैन और देवास पर बीजेपी का कब्जा है. इसके अलावा 26 विधानसभा सीट को भी यह यात्रा कवर कर रही हैं. इनमें से 16 सीट पर बीजेपी और 10 पर कांग्रेस के विधायक है. खंडवा जिले की चारों विधानसभा सीटें बीजेपी के पास हैं. बुरहानपुर में एक सीट पर बीजेपी और एक पर निर्दलीय काबिज हैं. खरगोन जिले की सभी 5 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हैं. वहीं इंदौर जिले की 9 विधानसभा सीटों में से 6 बीजेपी और 3 कांग्रेस के पास हैं. उज्जैन जिले में 4 सीटों पर कांग्रेस और तीन विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. आगर मालवा जिले में एक सीट बीजेपी और एक कांग्रेस समर्थित के पास है.

सिंधिया के बगावत से कांग्रेस को मिली थी हार
मध्य प्रदेश में बीजेपी 2003, 2008 और 2013 में लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीती थी लेकिन 2018 में उसे एन्टी इनकम्बेंसी के चलते कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा था. वहीं कांग्रेस क्षेत्रों में आंतरिक कलह के चलते सरकार लगभग सवा साल ही चल सकी. ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बगावत के बाद उनके समर्थक 22 कांग्रेस विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया. इन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया और इससे राज्य में बीजेपी की फिर से सरकार बन गई. इनमें से अधिकांश को बीजेपी ने टिकट दिया और इमरती देवी को छोड़कर सभी जीत गए और इनमें से कुछ मंत्री भी बन गए. अब 2023 के विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस-बीजेपी ने राजनीतिक बिसात बिछानी शुरू कर दी है.