जबलपुर। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने बालाघाट लांजी से समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीते की जनहित याचिका का निर्देश के साथ पटाक्षेप कर दिया। हाई कोर्ट ने लोकायुक्त को राज्य ओबीसी आयोग के चेयरमैन और भाजपा विधायक गौरीशंकर बिसेन के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति को लेकर लगाए गए आरोपों की विधि अनुसार जांच करने के निर्देश दिए हैं। बिसेन 2008 से 2018 तक भाजपा सरकार में मंत्री रहे हैं। अभी उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है।
उल्लेखनीय है कि किशोर समरीते ने 2012 में जनहित याचिका दायर कर आरोप लगाए थे कि तत्कालीन कैबिनेट मंत्री गौरीशंकर बिसेन के पास वर्ष 1984 में कोई खास संपत्ति नहीं थी। विधायक व मंत्री रहते हुए उनकी संपत्तियों में लगातार असामान्य बढ़ोतरी हुई है। कई बेशकीमती संपत्तियां उनके व उनके परिवार के सदस्यों और अन्य रिश्तेदारों के नाम से खरीदी गई हैं। बिसेन द्वारा 2003 से 2011 के बीच चुनाव आयोग को दी गई संपत्तियों की जानकारियां भी याचिका के साथ प्रस्तुत की गई थी। याचिका में कहा गया संबंधित अधिकारियों को शिकायतें देने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होने के कारण हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। वहीं बिसेन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रवीश अग्रवाल व स्वप्निल गांगुली ने कहा कि इस मामले में दो बार जांच हो चुकी है। उस जांच में आरोप साबित नहीं हुए।
याचिका में आरोप लगाया गया कि बिसेन ने अपनी पुत्री मौसम के नाम पर पुणे में 50 लाख रुपये का फ्लैट खरीदा। बालाघाट कलेक्टर के निवास के सामने ढाई करोड़ रुपए की जमीन खरीदी। बालाघाट के पटेरिया कैम्पस में पत्नी रेखा बिसेन के नाम पर 91 लाख रुपयों की जमीन खरीदी। सेनेटरी पाइप बनाने वाली एक फैक्ट्री उन्होंने 90 लाख रुपयों में खरीदी। कोठारी दाल मिल गर्रा के पास 7 करोड़ रुपयों की कृषि भूमि और वारासिवनी में मदरसा के पास पांच एकड़ जमीन खरीदी। बालाघाट में करोड़ों रुपये में 11 एकड़ जमीन बेनामी संपत्ति के रूप में खरीदी है।
हाई कोर्ट ने जून 2014 को पारित आदेश में रजिस्ट्री को याचिका की प्रति लोकायुक्त को देने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने लोकायुक्त को निर्देश दिए थे कि शिकायत पर जांच कर विधि अनुसार कार्रवाई करें। हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ मंत्री बिसेन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को याचिका पर पुन: सुनवाई के निर्देश दिये थे। इसके बाद हाई कोर्ट ने मार्च 2017 में याचिका की नए सिरे से सुनवाई प्रारंभ की थी।