ग्वालियर: अभी हाल ही में शहर के विकास कार्यों की समीक्षा बैठक में केंद्रीय मंत्री ज्योतरादित्य सिंधिया ने  नवनिर्मित 1000 बिस्तर के अस्पताल की खामियों पर नाराजगी जाहिर की थी। और 15 दिन में सभी खामियां दुरुस्त करने को कहा था। सिंधिया के इस अल्टीमेटम से जिला प्रशासन हरकत में आया और अब लगातार इस अस्पताल की कमियां दूर करने का प्रयास कर रहा है। लेकिन खामियों का अंबार इतना है कि ऐसा बिल्कुल प्रतीत नहीं होता कि सिंधिया के 15 दिन के अल्टीमेटम में कुछ हो पाएगा। 

कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह स्वयं निरीक्षण करने अस्पताल पहुंचे और हर जगह बिखरी अव्यवस्था व खामियों को देख उन्होंने डीन डॉक्टर अक्षय निगम को जमकर फटकार लगाई। जब कलेक्टर सी ब्लॉक पहुंचे तो वहां उन्हें टॉयलेट में गंदगी नजर आईं व टोटिया गायब नजर आई। टोटी चोर पर कलेक्टर और डीन में खूब बहस हुई। कलेक्टर ने साफ कहा कि यदि हमारी व्यवस्था इसे रोकने की नहीं है तो लगाना ही नहीं चाहिए थीं। जब कलेक्टर ने टॉयलेट k नालियों पर लगी जलिया देखीं तो वह घटिया जाली देख कर बोले कि इस तरह की जाली बनती है, घरों में ऐसे ही जाली लगाते हो? सडा सा लगता है दो कोड़ी की जाली लगा रखी हैं। इतनी खराब जाली मैने कहीं नहीं देखीं। 

इस अस्पताल के निर्माण में घटिया समान का प्रयोग हुआ है। बाहर से पोत पात कर सुंदरता दिखाई गई है लेकिन बिजली पानी की अंडरग्राउंड फिटिंग बहुत ही घटिया है। पानी की पाइप व सीवर लगातार फूटते रहते हैं। जिस जगह पानी के पाइप फटते हैं जब कलेक्टर ने उस जगह का निरीक्षण किया तो पाया कि 6 मजिल तक पानी चढ़ाने के लिए घटिया प्लास्टिक पाइप लगे थे जो प्रेशर के कारण फट जाते हैं। कलेक्टर को डीन ने सफाई देते हुए बताया कि अब लोहे के पाइप लगवा रहे हैं। कलेक्टर ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि जब निर्माण के समय पता था कि 6 मंजिल पानी पहुंचाना है लाइन फट जाएगी तो पहले ही यह ध्यान क्यूं नहीं रखा गया?

जिस दरार को लेकर ख़बरें प्रकाशित हुई थी और कलेक्टर सभागार में सिंधिया ने भी जिस दरार को लेकर इंजीनियर की फटकार लगाई थी। उस जगह जब कलेक्टर पहुंचे तो ठेकेदार ने दरार को क्रेक सील से भरना बताया। लेकिन कलेक्टर ने पेन से जब उस जगह पर कुरेदा तो वह बाहर निकल आया। अब क्रैक सील भरी गई कि पुट्टी ये तो ठेकेदार ही जाने। पूरे अस्पताल में हर जगह इतनी खामियां हैं कि शायद कलेक्टर भी समझ गए होंगे कि 15 दिन में केवल खानापूर्ति है हो सकती है जो कि ठेकेदार कर रहा है। इतने बड़े अस्पताल के निर्माण में निर्धारित 338 करोड़ की जगह 400 करोड़ से अधिक रुपया पानी की तरह बहाया गया है। निर्माण के समय है कई कमियां दिखाई दे रही थी। लेकिन इस अस्पताल के निर्माण में जल्दबाजी की गई साथ ही निर्माण की गुणवत्ता से समझौता किया गया। अब दरार देखकर लकीर पीटी जा रही है। फिलहाल तो प्रशासन सख्त नजर आ रहा है। लेकिन क्या इस अस्पताल की खामियां खत्म हो पाएंगी या यह 1000 बिस्तर का अस्पताल 1000 खामियों का अस्पताल कहलाएगा?