ग्वालियर। ग्वालियर के वैश्य गार्डन रमटापुरा तानसेन नगर पर चल रही पूज्य राघव ऋषि की संगीतमय श्रीमद भागवत का आज समापन दिवस है। इस अवसर पर ऋषि सेवा समिति के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य राघव ऋषि ने कहा कि मनुष्य यदि योगी नहीं तो उपयोगी अवश्य बने।

पूज्य राघव ऋषि ने श्रीमद भागवत के समापन अवसर पर उद्धव प्रसंग की व्याख्या करते हुये बताया कि भक्ति को यदि ज्ञान का साथ होता है तो जीवन पूर्ण बनता है। ज्ञान प्रेम के बिना निरर्थक है। ज्ञान , भक्ति और वैराग्य तीनों का समन्वय होने से प्रभु मिलन होता है। उन्होंने कहा कि थोथा ज्ञान अभिमान को लाता है , जबकि भक्ति नम्रता को लाती है। उद्धव जी ज्ञानी थे अत: अहंकार जीवन में था।

पूज्य राघव ऋषि ने कहा कि जीव ईश्वर का स्मरण करे यह साधारण भक्ति है परंतु वह भक्त धन्य है जिसे भगवान याद करें। भक्ति ऐसी करो कि स्वयं भगवान तुम्हारा स्मरण करें । गोकुल , गोपियों को याद करके भगवान रोते थे। भगवान ने उद्धव जी से कहा कि तुम व्रज जाओ। वहीं वेदान्त का उपदेश दो ताकि वह मुझे भुला दें। उद्धव जी ने प्रभु से कहा गोपियां अनपढ हैं वे मेरे ब्रह्म ज्ञान को कैसे समझेंगी। उद्धव जी व्रज में गये परंतु नन्द-यशोदा , गोपियों के प्रेम को देखकर उनका ज्ञानाभिमान हवा हो गया। वह सोचने लगे सभी कण-कण मं भगवान के असतित्व का अनुभव कर रहे हैं। यह अनपढ रहकर भी ब्रह्म की सर्वव्यापकता का अनुभव कर रहे हैं और में वर्षों से ब्रह्म के वेदान्त का रटन-चिन्तन करता हूं पींतु उनका दर्शन नहीं कर रहा हूं मेरा ज्ञान निरर्थक है। ज्ञानार्जन एक बात है और ज्ञानानुभव दूसरी बात।

पूज्य राघव ऋषि ने विविध प्रसंगों के क्रम में वेणुगीत की चर्चा करते हुये कहा कि भगवान शिव ही बांसुरी के रूप में आए। वह स्वयं श्रीकृष्ण के हाथों में हैं। योगीराज दत्तात्रेय की चर्चा करते हुये पूज्य राघव ऋषि ने कहा कि यदुवंश के आदि प्रवर्तक महाराज यदु थे। अपने चौबीस गुरूओं की चर्चा करते हुये दततत्रेय ने कहा कि धरती मेरी पहली गुरू है सहन शक्ति मैंने धरती से सीखी है। वायु की भांति गुण दोष से परे रहो। आकाश ने सिखाया कि आत्मा अविनाशी है। जल की भांति शीतल और मधुर रहो। हृदय में विवेक अग्रि जलती रहेगी ता जीवन पवित्र रहेगा। चन्द्रमा से सीखा कि बुद्धि और हृास जीवन में बना रहता है। सूर्य से परोपकार सीखा। कबूतर से अनासक्ति , अजगर से संतुष्टि , समुद्र से स्थिरता , पतंगा से मोह से दूर रहता , भ्रमर से आसक्ति का त्यागहाथी से नि:संगता, मधुमक्खी से संग्रह न करना , मछली से जिव्हा सुख से दूर रहना, वैश्या से निराशा, कुररी पक्षी से त्याग, बालक से निर्दोषता, सर्प से अकेले विचरण करना। कीटक से प्रभु चिन्तन सीखा।

मनुष्य जीवन भोग विलास के लिये नहीं बल्कि प्रभु भक्ति के लिये मिला है। उन्होंने कहा कि संसार माया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कथा सुनकर जीवन में उतारने से कथाश्रवण सार्थक होता है। प्रभु का नाम संकीर्तन सभी पापों को नष्ट करता है। ऐसे हरि भगवान को हम सभी नमन करते हैं। इस अवसर पर पूज्य राघव ऋषि के पुत्र सौरभ ऋषि ने ऐ श्याम तेरी बांसुरी भजन प्रस्तुत किया जिस पर सभी श्रद्धालु झूम उठे। वहीं अंत में सौरभ ऋषि ने हरि प्रीत लगाकर चले गये भगजन भी गाया तो कथा पंडाल में मौजूद जनसामान्य अश्रुपूरित नेत्रों से भावपूर्ण नृत्य करने लगे।

कथा के अंत में मुख्य अजमान राकेश गुप्ता एवं श्रीमती संध्या गुप्ता परीक्षत राकेश गुप्ता जी की मां श्रीमती शकुंतला देवी , संतोष अग्रवाल ,रामबाबू अग्रवाल ,संजय शर्मा ,हरिओम मिश्रा ,राम सिंह तोमर, देवेंद्र तिवारी, मनोज अग्रवाल ,मनीष बंसल ,राजीव शर्मा ,नवीन त्रिपाठी ,मनीष अग्रवाल, बल्लू ,राजू ,अंबरीश गुप्ता, उमेश उप्पल, आनंद मोहन अग्रवाल ,प्रमोद गर्ग ,जगमोहन सिंह ,रामप्रसाद शाक्य ,चंद्र प्रकाश शुक्ला बद्री प्रसाद गुप्ता ,दिनेश अग्रवाल ,रघुनंदन सिंह तोमर ,राम सिंह तोमर ,उमाशंकर बस ,जगदीश गुप्ता, विष्णु पहारिया, गिरीश शर्मा ,रामप्रसाद शाक्य,रचना पहारिया ,मीना सेठ ,श्रीमती सुधा रानी गुप्ता ,राधा रानी प्रतिभा श्रीवास्तव, प्रीति श्रीवास्तव, चंद्रकांता अग्रवाल ,अनीता शर्मा, बंदना बस ,ज्योति उप्पल ,श्रीमती ममता अग्रवाल ,राधा रानी अग्रवाल आदि सभी साधकों ने श्रीमद्भागवत पोथी का पूजन कर आरती में सम्मिलित हुए।