इंदौर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त होने के बावजूद जैन समुदाय हिंदू विवाह अधिनियम के दायरे में आता है। फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ जैन समुदाय से ताल्लुक रखने वाले एक पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने यह बात कही।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने सोमवार को कहा कि 2014 में अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने के बावजूद जैन समुदाय हिंदू विवाह अधिनियम के दायरे में है। हाई कोर्ट इंदौर फैमिली के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश के 8 फरवरी के आदेश के खिलाफ एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। फैमिली के न्यायाधीश ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत जैन समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर और उसकी पत्नी की आपसी सहमति से तलाक की अर्जी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
फैमिली कोर्ट के न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा था कि 2014 में जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का सरकारी दर्जा मिलने के बाद इस धर्म के किसी भी अनुयायी को विपरीत मान्यता रखने वाले किसी भी धर्म से संबंधित पर्सनल लॉ का लाभ देना उचित नहीं लगता है।
हाई कोर्ट में अपनी अपील में सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने तर्क दिया था कि उसने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था। अपील को स्वीकार करते हुए जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और संजीव एस कलगांवकर की पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने यह निष्कर्ष निकालकर गंभीर गलती की है कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के प्रावधान जैन समुदाय के सदस्यों पर लागू नहीं होते। हाई कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी के तहत दायर याचिका को फैमिली कोर्ट अधिनियम की धारा 7 के तहत प्रस्तुत करने के लिए वापस कर दिया।
हाई कोर्ट की पीठ ने कहा कि 8 फरवरी का विवादित आदेश रद्द किया जाता है। अपील स्वीकार की जाती है। इंदौर के प्रथम अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश फैमिली कोर्ट को कानून के अनुसार याचिका पर आगे बढ़ने का निर्देश दिया जाता है।
हाई कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 की धारा 2 के खंड (सी) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए जैन समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया है। यह अधिसूचना जैन समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता देती है, लेकिन यह किसी भी मौजूदा कानून के स्पष्ट प्रावधान को संशोधित, अमान्य या अधिक्रमित नहीं करती है। साथ ही जैन समुदाय के सदस्यों को किसी भी मौजूदा कानून के दायरे से बाहर करने के लिए कोई संशोधन नहीं किया गया है।
भारतीय संविधान के संस्थापकों और विधानमंडल ने अपने सामूहिक विवेक से हिंदू विवाह अधिनियम के अनुप्रयोग के लिए हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख को एकीकृत किया है। हाई कोर्ट ने कहा कि अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश के लिए कानून के स्पष्ट प्रावधानों के विरुद्ध अपने स्वयं के विचारों और धारणाओं को प्रतिस्थापित करने का कोई मतलब नहीं था।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यदि फैमिली कोर्ट को यह विश्वास हो कि उसके समक्ष लंबित मामले में हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के जैन समुदाय के सदस्यों पर लागू होने के बारे में प्रश्न शामिल है, तो वह फैमिली कोर्ट अधिनियम की धारा 10 के साथ सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 113 के तहत हाई कोर्ट की राय के लिए मामले को उल्लेखित कर सकता था।