भोपाल। भोपाल जिले के ग्लोबल पार्क सिटी कटारा के निवासी हर्ष गोरे बताते है कि इवानोफ्रैंकविस्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी यूक्रेन में एमबीबीएस प्रथम वर्ष का छात्र हूं। मेरा प्रथम सेमेस्टर लगभग पूर्ण हो चुका है। यूक्रेन में हुए घटनाक्रम के बारे में बताते हुए कहा कि 25 फरवरी को मैं कालेज जाने के लिए तैयार हो रहा था

तभी अचानक बहुत तेज धमाका हुआ नीचे गया तो पता चला एयरपोर्ट के पास धमाका हुआ है एवं युद्ध प्रारंभ हो चुका है। तभी भारतीय दूतावास से यूक्रेन छोड़ने की सूचना प्राप्त हुई। मैंने केवल उतना ही सामान लिया जिसे आसानी से उठाया जा सके और यात्रा के दौरान पर्याप्त हो।

हर्ष बताते है कि 26 फरवरी को सुबह हमारा ग्रुप रोमानिया बार्डर के लिए रवाना हुआ। करीब सात से आठ घंटे में हम वहां पहुंचे। जहां करीब दस से पन्द्रह किलोमीटर पहले हमें उतार दिया गया एवं वहां से पैदल बार्डर तक पहुंचने के लिए कहा गया। वहां पर बहुत ज्यादा भीड़ थी।

बार्डर तक पहुंचने एवं बार्डर क्रास करने में करीब बीस घंटे लगे। – 5 डिग्री तापमान में चलन एवं खड़े रहना लगभग असंभव हो गया था। खाने पीने का सामान खत्म हो गया निराशा इस कदर हावी हो गई थी कि लग रहा था कि जिंदा वापस नहीं लौट पाएंगे। जैसे तैसे बार्डर पार की।

हर्ष बताते है कि भारत शासन के प्रयासों से लगातार हमे मदद मिलती रही। समस्या अनेक थी पर देश के झंडे के नीचे एक सुरक्षा का भाव था जिसे लेकर हम आगे बढ़ रहे थे और भारत की अहमियत और अपनो के बीच होने की बात अब समझ में आ रही थी।

 हर्ष के पिता संजय गोरे ने बताया कि भारत शासन के सहयोग से आज हमारा बच्चा हमारे पास सुरक्षित पूछ गया है। इसके लिए मैं और पूरा परिवार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करते है इसके साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल से भोपाल तक सकुशल वापस आ गए है।

हर्ष बताते हैं कि    रोमानिया बार्डर पर लाखो लोगो की भीड़ थी जिसमे यूक्रेनी नागरिकों के साथ अन्य देशों के लोग भी बॉर्डर क्रॉस करना चाहते थे इसके लिए पास के होटल में एक रात  गुजारी, सबसे बड़ी बात यह थी की भारत देश का पासपोर्ट होने से तुरंत क्लियरेंस हो गया। जो भी समय लगा वो अत्यधिक भीड़ के कारण लगा। रोमानिया बॉर्डर पर भारत शासन के सहयोग से बस आई और हमे रोमानिया में शेल्टर होम ले गई।

वहा पर रुकने, खाने पीने के साथ आराम से सोने के भी पर्याप्त इंतजाम थे। लगातार सफर, -5 डिग्री सेल्सियस तापमान और  लगातार पैदल चलने के कारण आगे चलने की शक्ति खत्म हो चुकी थी , शरीर के हर हिस्से में असहनीय दर्द हो रहा था। ये 48 घंटे बिताना मौत से साक्षात्कार की तरह था। लेकिन सभी बच्चों का यही हाल। सब इस मुश्किल समय में एक दूसरे को सहारा दे रहे थे। बस में बैठते ही हम सब स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे‌ थे।

इस मुश्किल समय में हमारे प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने जिस तत्परता से अपने नागरिकों को निकालने का प्रयास किया ऐसा लगा मानों साक्षात ईश्वर हमारी सहायता कर रहे हैं।

हो सकता है कुछ लोगों को मेरी बातें अतिशयोक्ति पूर्ण लगे लेकिन जिन्होंने इन मुश्किल पलों को जीता है वे इस बात से सहमत होंगे।  करीब 7-8 घंटे के बाद हम शेल्टर होम पहुंचे।

वहां हमें खाना पानी मिला। अब हम स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे थे। दो दिन के इंतजार के बाद 01 मार्च को हम दिल्ली पहुंचे वहां भारत सरकार के प्रतिनिधियों ने बच्चों का स्वागत किया। एयरपोर्ट पर सभी प्रदेश के स्टाल लगे थे। एयरपोर्ट के पास ही होटल में एक कमरा बुक किया एवं वहां जाकर सो गया।

-अगले दिन 2 मार्च को मैं भोपाल पहुंचा

मैं और मेरा परिवार मोदी जी, भारत सरकार एवं हमारे मुख्यमंत्री जी के आभारी हैं जिन्होंने अति कठिन परिस्थिति में हमारा हौसला बढ़ाया, हमें खाना एवं पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं देते हुए हमारे प्राणों की रक्षा की एवं हमें सकुशल घर पहुंचाया। अब हमारी चिंता अपने भविष्य को लेकर है। मैं चाहता हूं सरकार हमें सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दे क्योंकि प्राइवेट कालेजों की फीस भरना संभव नहीं होने के कारण ही मुझ जैसे बच्चों को विदेश जाना पड़ा।

 मैं चाहता हूं कि सरकार हमारा भविष्य सुरक्षित रखने की दिशा में सार्थक पहल करे । मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि आम तौर पर जो बच्चे विदेश जाते हैं वहीं के होकर रह जाते हैं ऐसे में हमारा देश अनेक योग्य डाक्टरों की सेवाओं से वंचित रह जाता है।