भोपाल: मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव, महिला सरपचों और महिला सशक्तिकरण के नाम पर मजाक चल रहा है. सच्चाई यह है कि प्रदेश के कई गावों की सरपंची पर महिलाओं का नहीं, बल्कि दबंगों का कब्जा है. दबंग ही महिला सरपंचों को जगह सील और साइन लगाते हैं. जहां दबंग नहीं हैं, वहां महिलाओं के पति गांव की सरकार चला रहे हैं. इन गावों में महिला सरपंच आजीविका चलाने के लिए घरों के काम कर रही हैं. कुल मिलाकर प्रदेश में सरपंची व्यवस्था पटरी से उतर चुकी है.
गांव की सरकार के मामले में प्रदेश के भोपाल, ग्वालियर और सागर संभाग के जिलों में हालात बद्तर हैं. इन जिलों में महिला सरपंचों की जगह उनके परिजन ऑफिस चला रहे हैं. कहीं पति, कहीं देवर, कहीं जेठ तो कहीं ससुर कुर्सी पर बैठे हुए हैं. महिला सरपंचों को इतना भी नहीं पता कि हो क्या रहा है. विकास के कितने काम हुआ या होने हैं, इसकी उन्हें बिल्कुल जानकारी नहीं है. खासकर, एससी-एसटी महिला के लिए आरक्षित ग्राम पंचायतों में स्थित विडंबनाओं से भरी हुई है. यहां दबंग पंचायत चला रहे हैं. जबकि, महिला सरपंच घरों में काम-काज कर रोजी-रोटी कमा रही हैं.
सूत्रों के मुताबिक, कुछ महिला सरपंच केवल सर्टिफिकेट लेने तक सरपंच रहीं. उसके बाद दबंगों ने उनके सर्टिफिकेट छीन लिए. दबंग ही उनकी सील और साइन करते हैं. एक मामले में उपसरपंच के बेटे ने कहा कि मैं ही सरपंच हूं. उसीने कागजात पर साइन कर दिए. दूसरे मामले में, मुरैना जिले की पोरसा जनपद की विंडवा पंचायत की दलित महिला सरपंच मुन्नी देवी ने बताया कि मैं किराए के घर में रहती हूं. तीन घरों में झाड़ू-पोछा कर 6 हजार रुपये कमाती हूं. सरपंच के चुनाव के वक्त दबंग ने उसे प्लॉट देने का वादा कर चुनाव लड़वाया. जब वह चुनाव जीत गईं तो दबंग ने उनसे सील-सिक्के ले लिए.
शिवपुरी जिले की बदरवास की धामनटूक पंचायत की आदिवासी सरपंच विमला बाई की जगह उपसरपंच श्याम बिहारी गांव की सरकार चला रहा है. विमला के सरपंच बनते ही श्याम ने उसका सर्टिफिकेट छीन लिया. ये महिला साल 2022 में सरपंच बनी थी, लेकिन तब से आज तक हुई बैठकों में उसे नहीं बुलाया गया. विमला घर चलाने के लिए मजदूरी कर रही हैं. खाना बनाने के लिए जंगल से लकड़ी लेने जाती हैं. पंचायत में 1.65 करोड़ रुपये के विकास काम हुए हैं, लेकिन मैंन कोई साइन नहीं की.