वर्तमान में शहर से लेकर गांव तक का अधिकांश युवा वर्ग कानों में ईयरफोन लगाकर घूमते दिखाई दे रहे हैं. इसमें बच्चों का भी समावेश हैं, जिससे अधिकांश युवा कान समस्या से जूझ रहे हैं. ईयरफोन लगाने के कारण दुर्घटनाएं भी हो रही हैं. दूसरे वाहनों के हॉर्न पर भी ध्यान नहीं जा रहा है जिससे दुर्घटना होने की अधिक संभावना बनी रहती है. जानकारी के अनुसार मॉर्निंग वॉक से लेकर खाना खाने, रात को बेड पर लेटे हुए भी लोगों के कानों में ईयरफोन या एयरपॉड्स लगे रहते हैं. कई लोग पूरे समय इन्हें अपने कानों में या गले में लटकाए रहते हैं, जो अब फैशन का रूप ले चुका है.
नसों के डैमेज होने से बहरापन, डिप्रेशन जैसी होती हैं समस्याएं
देश-दुनिया में हुई कई रिसर्च और डाक्टरों के अनुसार, इस आदत के चलते सुनने में समस्या, लाइफस्टाइल, सोशल आइसोलेशन डिप्रेशन जैसी कई समस्याएं सामने आ रही हैं. डाक्टर्स के मुताबिक, हाई इंटेंसिटी म्यूजिक, वेब सीरीज, फिल्म मोबाइल में सुनने के कारण ये दिक्कतें अब आम होती जा रही हैं. डाक्टरों के अनुसार लंबे समय तक ईयरफोन का इस्तेमाल करने से कानों की उन महीन नसों पर असर पड़ता है, जिसकी मदद से हमें कोई ध्वनि सुनाई देती है. नसों के डैमेज होने से बहरापन, डिप्रेशन आदि समस्याएं होती हैं.
लंबे समय से सुनने पर व्यक्ति के कान हो सकते हैं सुन्न
कानों में छन छन की आवाज आना, नींद न आना, चक्कर आना, कान और सिर में दर्द जैसे लक्षण जरूरत से ज्यादा ईयरफोन का इस्तेमाल सुनने की क्षमता को कम कर देता है. लंबे समय से ईयरफोन से गाने सुनने पर लोगों के कान सुन्न हो सकते हैं.
कॉकलिया लेयर हो जाती है खराब
डाक्टरों के मुताबिक 80 डेसीबल साउंड को अगर एक दिन में 8 घंटे से ज्यादा सुना जाए तो बहरापन बढ़ेगा. कान की तीसरी लेयर कॉकलिया यदि एक बार डैमेज हो गया तो यह कभी नहीं सुधरता ईयरफोन या ईयरपॉड्स लगाने से कान का वैक्स पीछे चला जाता है जो कान के सिर्फ आउटर लेयर के एक तिहाई हिस्से में होता है.
80 डेसिबल से ज्यादा साउंड नहीं
हमारे कानों के सुनने की क्षमता सिर्फ 80 डेसीबल होती है, जो धीरे- धीरे 40-50 तक कम हो जाती है. जिससे बहरनेपन की शिकायत होने लगती है. इसके साथ ही सिर दर्द और नींद न आना जैसी बीमारियां भी होने लगती हैं. बता दें कि तेज आवाज से ईयर कैनल में दबाव पड़ता है. जिससे चक्कर या सिर दर्द जैसी सम्सयाएं महसूस होने लगता है.