रायपुर।  सन्मति नगर फाफाडीह में सआनंद जारी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव में बुधवार को आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने धर्मसभा में कहा कि जीवन में अकलंक बनकर रहना, कर्म कलंक शून्य नहीं हो सकता। यदि विदेश भी जाना तो अकलंक बनकर जाना और अकलंक बन कर आना, धन कमाकर आना, शिक्षा लेकर आना लेकिन धर्म बेचकर नहीं आना। ज्ञानियों घर की कन्या को विधर्मी के हाथ में मत देना और आपके पास धन हो तो कुएं में डाल देना लेकिन पापियों को मत देना।

आचार्यश्री ने कहा कि शब्दात्मक धर्म में सर्वत्र सदृश्य है। शब्दात्मक धर्म से लोग प्रभावित करते हैं,धर्म शब्द का प्रयोग करके कुछ कल्याण करा देते हैं तो कुछ अकल्याण करा देते हैं। शब्दात्मक धर्म से प्रभावित होकर किसी के मार्ग पर चलना प्रारंभ नहीं करना,हर व्यक्ति धर्म शब्द का प्रयोग करके मोक्ष मार्गी बना दे यह नियत नहीं है। कभी धर्म शब्द सुनकर तुरंत प्रभावित मत हो जाना, यदि किताब के ऊपर लिखा है धार्मिक है तो खरीद मत लेना और खरीद लिया हो एवं घर जाने के बाद खोला उसमें अधर्म की बात लिखी थी तो अनर्थ हो जाएगा। मित्रों सिर्फ शब्द पढ़कर और सुनकर प्रभावित मत होना,मौके पर ही किताब को खोल कर भी देख लेना।

आचार्यश्री ने कहा कि मनुष्य के पास बहुत सामर्थ्य शक्ति है। ऐसे जब दूध से मावा बन जाता है,मावा बनने से स्वाद बदल जाता है और कीमत बढ़ जाती है। ज्ञानियों तप का प्रभाव तो देखो,अग्नि के ताप से दूध मावा बन जाता है तो ज्ञानियों तपस्या के तप के प्रभाव से मानव महामानव तीर्थंकर भगवान बन जाता है,यह तप की महिमा है। सम्यक दृष्टि के चरणों में देव भी आकर सिर टेकते हैं। जैसे तीर्थंकर के माता-पिता तीर्थंकर नहीं है,भगवान का गर्भ में आकर जन्म तो बहुत दिन बाद हुआ,पर देवी देवता आकर भगवान के माता-पिता की सेवा करते रहते हैं।