ग्वालियर । प्रदेश के पांच जिलों में ड्रोन स्कूल शुरू करने की घोषणा केंद्रीय नागरिक उड्डन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने की, जिसके बाद से ड्रोन के इस्तेमालों पर व्यापक चर्चा का दौर शुरू हो गया है। ड्रोन मेले में शामिल अधिकारियों ने बताया कि ड्रोन स्कूलों में 6 महीने का सर्टिफिकेशन कोर्स हुआ करेगा।
खास बात यह है कि इस सर्टिफिकेट कोर्स को करने के लिए कोई विशेष योग्यता की आवश्यता नहीं होगी। बल्कि 10वीं, 12वीं पास विद्यार्थी इस कोर्स को करके ड्रोन चलाने के लिए सर्टिफिकेट व पायलेट लायसेंस ले सकेंगे। जिसके बाद उन्हें 20 से 30 हजार रुपये तक के वेतन पर नौकरी मिल सकेगी। निजी स्कूल भी इस सर्टिफिकेशन कोर्स को शुरू कर सकेंगे। स्वास्थ्य, व्यवसाय, रक्षा व कृषि क्षेत्र में ड्रोन का मुख्य रूप से इस्तेमाल होगा। ऐसे में करीब 3 लाख नए रोजगार ड्रोन के कारण सृजित हो सकेंगे। इतना ही नहीं, स्पाइस जैट के निदेशक अजय शाह ने ड्रोन लांच किया, जिससे दुर्गम स्थानों पर ही सामान पहुंचाया जाएगा। देश में जल्द ही ड्रोन एयरलाइन शुरू करने की बात भी उन्होंने कही।
एमआईटीएस बनेगा ड्रोन एक्सीलेंसी सेंटर, सिलेबस में शामिल होगा ड्रोन
ग्वालियर, इंदौर, भोपाल, जबलपुर एवं सतना में ड्रोन स्कूल खोलने के साथ ही ग्वालियर के माधव इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालजी एंड साइंस (एमआईटीएस) में ड्रोन एक्सीलेंसी सेंटर शुरू करने की घोषणा भी सिंधिया ने की थी। एमआईटीएस ग्वालियर के प्रोफेसर एवं हेड कंप्यूटर साइंस विभाग डा. मनीष दीक्षित ने बताया कि एमआईटीएस का आईजी ड्रोन कंपनी से एमओयू हुआ है। करार के तहत ड्रोन से जुड़ी तमाम तकनकी को विस्तृति किया जाएगा। ड्रोन संचालन व तकनीकि पहलुओं का प्रशिक्षण विद्यार्थियों को दिया जाएगा। कंपनी द्वारा विद्यार्थियों के लिए प्रोजेक्ट भी उपलब्ध कराए जाएंगे, जिनपर विद्यार्थियों द्वारा भौतिक रूप से काम किया जाएगा। फिक्की के साथ भी एक एमओयू हुआ है। जिसमें कृषि व कामर्शियल क्षेत्र में क्या जो हो रहा है, उनसे विद्यार्थियों को जोड़ा जाएगा। करार के तहत इंडस्ट्रीज व इंस्टीट्यूट पार्टन बने हैं। जिसमें इंडस्ट्री प्रोजेक्ट उपलब्ध कराएगी। विद्यार्थी इंडस्ट्रीज में जाकर विजिट भी करेंगे। फिलहाल ड्रोन को सिलेबस में विस्तृत्व रूप से जोड़ा जाएगा। हालांकि पहले से ड्रोन सिलेबस का हिस्सा हैं। ड्रोन ट्रेनिंग आदि को फिलहाल मार्कशीट में अंकित करने पर कोई फैसला नहीं हुआ है। फिलहाल एमआईटीएस के विद्यार्थी ही ड्रोन को पढ़ेंगे, कुछ दिनों जन साधारण के लिए भी कोर्स शुरू किए जाएंगे।
‘कृषि विस्तार में सहयोगी बनेंगे युवा, ऐसे पैदा होंगे रोजगार
एस एग्री उड़ान प्राइवेट लिमिटेड, अहदाबाद गुजरात के मैनेजिंग डायरेक्टर बालेंदु अग्निहोत्री ने बताया कि फर्टिलाइजर व कीटनाशक आदि छिड़काव के लिए सुबह-सुबह शाम का समय ही सबसे उपयुक्त होता है। श्रमिकों द्वारा अगर 8 घंटे की शिफ्ट में काम किया जाता है, तो 3 एकड़ खेत में छिड़काव करने में 2 दिन लगते हैं। वहीं ड्रोन से इतना ही काम 20 मिनट में पूरा हो जाता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि श्रमिक व किसान खुद को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कीटनाशक आदि से खुद को दूर रख पाते हैं। पानी की बचत होती है, साथ ही दवा भी 20 फीसद कम लगती है। परंपरागत खेती में मेढ़ छोड़ना पड़ती है, जबकि ड्रोन से दवा का छिड़काव आदि करने के लिए मेढ़ को भी समतल कर खेती के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
चूंकि ड्रोन की कीमत 5 लाख से 30 लाख रुपये तक होती है, ऐसे में हर कोई इसे नहीं खरीद सकता। मगर छोटे किसान भी 600-800 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से कीटनाशक आदि का छिड़काव करा सकते हैं। गन्ना जो कि 10 फीट से भी ऊंचा होता है, उसका कीटनाशक भी आसानी से हो सकता है। सर्विस प्रोवाइडर के माध्यम से ग्रामीण युवकों को ही प्रशिक्षित कर यह सेवा उपलब्ध कराई जा सकती है। वर्तमान में देखा जा रहा है युवा कृषि कार्य से दूर होते जा रहे हैं। मगर ड्रोन की तकनीक उन्हें कृषि विस्तार के लिए प्रेरित करेगी, क्योंकि उन्हें खेत में मजदूरी नहीं करनी होगी। अग्निहोत्रि ने कहा कि चूंकि नई टेक्नालिजी है, इसलिए तमाम कयास लगाए जा रहे हैं। मगर 90 के दशक में किसान परंपागत बीज से ही खेती करते थे, मगर अब उन्नत बीज वे रोपते हैं। कृषि के अलावा स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन, पुलिस, ट्रैफिक, अग्निशमन, सामान डिलेवरी आदि के लिए प्रशिणक्ष प्राप्त कर युवा अच्छा वेतन पा सकते हैं।
कृषि कार्य के लिए इतना फायदेमंद ड्रोन
किसान की सुरक्षा: कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव के दौरान उसके संपर्क में आने व बीमारियों से बचेंगे। सांप, बिच्छु आदि जहरीले जंतु के काटने का डर नहीं रहता। कीचड़ वाली फसलें जैसे कि धान और ऊंचाई वाली फसलों की खेती में सरलता रहेगी.
फसल की विविधता: गन्ना, अंगुर की बेल, मक्का, जीरा, गेहूं, धान, चना, टमाटर, मिर्ची, भिंडी आदि पर भी आसानी से छिड़काव किया जा सकता है।
ढालवाली जमीन: ढालवाली जमीन जैसे की पर्वतीय खेतों में छिड़काव किया जा सकता है।
दवाई की बचत: आधुनिक माईक्रोटपक पद्धति से छिड़काव किया जाता है। जिसमें 20-30% दवाई की बचत होती है।
पानी की बचत: अल्ट्रा लो वोल्युम छिड़काव पद्धति से छिड़काव करने की वजह से सिर्फ 10% पानी का इस्तेमाल होता है। 90% पानी बचता है।
खर्च कम: दवा,पानी, समय आदि कम लगता है, जिससे खर्चा कम होता है। उत्पादन में वृद्धि होती है।
पर्यावरण संरक्षण: निश्चित समय एवं निश्चित जगह पर ही दवाई का छिड़काव होता है, जिसकी वजह से पानी और मिट्टी का प्रदूषण कम होता है।
उच्च कार्यक्षमता: प्रति दिन 50 एकड़ में छिड़काव कर सकते हैं, परंपरागत पद्धति से काफी अधिक मेहनत व समय लगता है। जीपीएस और सेटेलाइट द्वारा भूमि का नक्शा बना कर ओटोमेटिक छिड़काव किया जा सकता है।