ग्वालियर ।  लड़ने और विवाद की एक सीमा होती है पर तर्क का कोई अन्त नहीं होता। विवाद एक स्तर पर आकर खत्म हो जाता है। विवादों को समाप्त कराने में मध्यस्थ की अहम भूमिका होती है। यह बात उच्च न्यायालय खंडपीठ ग्वालियर के प्रशासनिक न्यायाधिपति न्यायमूर्ति श्री रोहित आर्या ने उच्च न्यायालय खण्डपीठ  में शनिवार को आयोजित हुई मीडिएशन रिफ्रेसर कार्यशाला में कही । न्यायमूर्ति श्री आर्या ने बताया कि हमारे देश में अलग अलग मनोवृत्ति के लोग रहते हैं,जो अक्सर भावुक होकर निर्णय ले लेते है। कई बार ऐसे भावुकतापूर्ण निर्णय विवाद का कारण बनते हैं। ऐसे में जब विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जाता है, उस समय मध्यस्थ को पक्षकारों की मानसिकता, परिस्थितियां एवं उसका वातावरण समझना बहुत जरूरी होता है, जो  सुलह समझाइश के आधार पर विवाद के निपटारा में बहुत सहायक सिद्ध होता है। 
कार्यशाला में मीडिएशन  सब-कमेटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री आनंद पाठक, न्यायमूर्ति श्री जी.एस. अहलूवालिया, न्यायमूर्ति श्री दीपक कुमार अग्रवाल, पोटेंशियल ट्रेनर शाहिद मोहम्मद एवं अधिवक्ता गण एच.के. शुक्ला,  संजय द्विवेदी, योगेन्द्र तोमर, पदम सिंह, जयप्रकाश शर्मा, सुरेश कुमार चतुर्वेदी, रामप्रकाश राठी, एस.के. शर्मा, डी.पी.एस. भदौरिया, विनय कुमार शर्मा, जागेश्वर सिंह, ओ.पी.  नायक , अमर सिंह तोमर, रिंकेश गोयल, श्रीमती संगीता जोशी, अवधेश श्रीवास्तव रिटा. जज, श्रीमती सुशीला सिंह,  प्रदीप प्रताप सिंह, सचिव एवं प्रिंसिपल रजिस्ट्रार डी.एन. मिश्र एवं रजिस्ट्रार हितेन्द्र द्विवेदी कार्यक्रम में सम्मिलित हुये। दीप प्रज्वलन, सरस्वती वंदन एवं माल्यार्पण के बाद कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। जस्टिस श्री आनंद पाठक ने बताया कि वैकल्पिक विवाद समाधान में मीडिएशन मेडिटेशन का कार्य करता है, और हमने भावनाओं के माध्यम से तर्क करना सीखा हैं। उन्होंने एक घटना के माध्यम से मनुष्य के भावुक होने का उदाहरण दिया  जिसमें एक पुल से कई लोगों के कूदकर जान देने की बात बताई तथा एक व्यक्ति ने यह घोषणा की कि यदि कोई मुझे हैलो बोलेगा तो में आत्महत्या नहीं करूंगा। किन्तु उसका यह संकल्प पूरा नहीं हो पाया और उसने उस पुल से कूदकर आत्महत्या कर ली। सार यह बताया कि उसे कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो उसकी संवेदनाओं को समझ सके। मध्यस्थ को विवादों के निपटारे के लिये संवेदनशील होना बहुत  आवश्यक है । यदि मध्यस्थ संवेदनशील होंगे तो समाज के नागरिकों की ’’लाईफ’’, ’’फाईल’’ में बदलने से बच जायेगी।