गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ खेलों के सातवें दिन सोने पर निशाना लगा. भारत की महिला डबल ट्रैप शूटर श्रेयसी सिंह ने अपने अचूक निशाने से देश को 12वां गोल्ड मेडल दिलाया. कांटे के मुकाबले में श्रेयसी ने पूरे फोकस के साथ निशाने साधे. हांलाकि उन्हें ऑस्ट्रेलियाई शूटर एमा कॉक्स ने जरूर टक्कर दी, लेकिन शूट ऑफ में बाजी श्रेयसी ने मारी. यह पदक न सिर्फ देश के लिए, बल्कि श्रेयसी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. श्रेयसी जिस मकसद के साथ गोल्ड कोस्ट पहुंची थीं, उसमें वह कामयाब रहीं.

श्रेयसी का अचूक निशाना

29 साल की श्रेयसी यह दिन कभी नहीं भूल पाएंगी. कॉमनवेल्थ खेलों में हिस्सा लेने से पहले उन्होंने खुद से और देशवासियों से जो वादा किया था, उसे पूरा किया. 2010 उनके लिए बेहद खराब रहा, जून में उनके पिता दिग्विजय सिंह का लंदन में ब्रैन हेमरेज के कारण निधन हुआ था. अक्टूबर 2010 कॉमनवेल्थ खेलों में वह हिस्सा नहीं ले पाई थीं, हालांकि उसी साल फरवरी में उन्होंने दिल्ली में कॉमनवेल्थ फेडरेशन चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता था.

2014 ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में श्रेयसी ने सिल्वर तो जीता, लेकिन वह निराश थीं. श्रेयसी ने तब कहा था कि मैंने सिल्वर नहीं जीता, बल्कि गोल्ड मेडल गंवाया है. गौरतलब है कि ग्लास्गो में पीठ में दर्द के बावजूद श्रेयसी ने इस स्पर्धा में हिस्सा लिया था. इसके अलावा उन्होंने 2014 इंचियोन एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता. श्रेयसी के दादा और पिता दोनों भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं.

श्रेयसी ने स्वर्ण पदक जीतने के बाद कहा ,‘मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. 2014 में मैंने रजत जीता था और मैं बहुत दुखी थी कि स्वर्ण नहीं जीत सकी, लेकिन इस बार मेरे पास मौका था. मैंने शूटऑफ में संयम बनाए रखा और खुशी है कि शत प्रतिशत दे सकी.’

उन्होंने कहा ,‘एमा बेहतरीन निशानेबाज हैं और उनके खिलाफ जीतकर ज्यादा खुशी हुई. ईश्वर मेरे साथ थे और किस्मत ने मेरा साथ दिया’. उन्होंने आगे कहा ,‘ मेरे कोचों ने मेरी मदद की और परिवार भी यहां है, इस बार में स्वर्ण पदक जीतने के इरादे से ही उतरी थी. मैं फिर रजत लेकर नहीं जाना चाहती थी.’

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