उज्जैन . उज्जैन में बरसों पुरानी परंपरा आज फिर निभायी गयी. महाअष्टमी पर कलेक्टर और एसपी ने देवी मां को शराब का प्रसाद चढ़ाया. उसके बाद कलेक्टर और एसपी कुछ दूर तक शराब की हंडी लेकर पैदल चले और 27 किमी तक शराब की धार चढ़ा कर अलग अलग भैरव मंदिरों में शराब का भोग लगाया गया.

उज्जैन में नवरात्रि की अष्टमी पर नगर पूजन हुआ. इसमें चौबीस खम्बा माता मंदिर में आरती की गयी. परंपरा अनुसार कलेक्टर और एसपी आरती में शामिल हुए. दोनों ने महालया और महामाया माता को मदिरा पिलाकर शहर को कोरोना महामारी से निजात दिलाने की प्रार्थना की.

मान्यता है कि यहां माता की पूजा राजा विक्रमादित्य करते थे. इसी परंपरा का निर्वाह जिलाधीश और एसपी करते चले आ रहे हैं. कलेक्टर आशीष सिंह और एसपी सत्येंद्र शुक्ल ने माता को मदिरा का भोग लगाया. उसके बाद 27 किमी तक शहर में शराब की धार चढ़ा कर अलग अलग भैरव मंदिरों में शराब का भोग लगाया गया. उज्जैन कलेक्टर और एसपी कुछ दूर तक शराब की हांडी लेकर पैदल चले.

राजा विक्रमादित्य के समय शुरू हुई यह परंपरा जिला प्रशासन आज भी उसी तरह निभा रहा है. मान्यता है कि इन मंदिरों में माता को मदिरा का भोग लगाने से शहर में महामारी के प्रकोप से बचा जा सकता है. लगभग 27 किमी लम्बी इस महापूजा में 40 मंदिरों में मदिरा चढ़ायी जाती है. यात्रा सुबह शुरू 24 खंबामाता मंदिर से शुरू होकर शाम को ज्योर्तिलिंग महाकालेश्वर पर शिखर ध्वज चढ़ाकर समाप्त होती है. इस यात्रा की खास बात यह होती है कि एक घड़े में मदिरा को भरा जाता है जिसमें नीचे छेद होता है. पूरी यात्रा के दौरान इसमें से शराब की धार बहती है जो टूटती नहीं है.

पूजन खत्म होने के बाद माता मंदिर में चढ़ाई गयी शराब को प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है. इसमें बड़ी संख्या में पुरुष श्रद्धालु थे तो वहीं कुछ महिला भक्तों ने भी मदिरा का प्रसाद ग्रहण किया.

उज्जैन में कई जगह प्राचीन देवी मन्दिर हैं, जहां नवरात्रि में पाठ-पूजा का विशेष महत्व है. नवरात्रि में यहां काफी तादाद में श्रद्धालु दर्शन के लिये आते हैं. इन्हीं में से एक है चौबीस खंबा माता मन्दिर. कहा जाता है प्राचीनकाल में भगवान महाकालेश्वर के मन्दिर में प्रवेश करने और वहां से बाहर की ओर जाने का मार्ग चौबीस खंबों से बनाया गया था. इस द्वार के दोनों किनारों पर देवी महामाया और देवी महालाया की प्रतिमाएं स्थापित हैं. सम्राट विक्रमादित्य ही इन देवियों की आराधना करते थे. उन्हीं के समय से अष्टमी पर्व पर यहां शासकीय पूजन करने की परम्परा चली आ रही है.

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