भोपाल: वर्ष 2023 के अंत में मध्‍य प्रदेश सहित पांच राज्‍यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को आम चुनाव 2024 के पहले ‘सेमीफाइनल’ की तौर पर देखा जा रहा है. इस वर्ष जिन राज्‍यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें हिंदी बेल्‍ट के मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ प्रमुख हैं. इसके अलावा तेलंगाना और मिजोरम में भी लोग मताधिकार का प्रयोग कर सरकार चुनेंगे. इन पांचों राज्‍यों में मध्‍य प्रदेश में सबसे अधिक 230 सीटें हैं, स्‍वाभाविक रूप से देश के इस ‘हृदय प्रदेश’ के नतीजों पर सबकी निगाह जमी है. राज्‍य में कुछ प्रमुख नेताओं के ‘पलायन’ का सामना कर रही बीजेपी के सामने सत्‍ता में वापसी की कठिन चुनौती है.

चुनावी बेला में बीजेपी तमाम अंतर्विरोधों का सामना कर रही. राज्‍य के कई छोटे नेता जहां ‘छिटककर’ कांग्रेस की शरण में जा रहे, वहीं पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती जैसे बड़े नेता पार्टी में अपनी उपेक्षा से मुंह फुलाए हैं. कार्यकर्ताओं/नेताओं में सबसे ज्‍यादा नाराजगी ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया की बीजेपी की ‘एंट्री’ के बाद उनके समर्थक विधायकों को मलाईदार देने को लेकर है. उनकी शिकायत है कि पार्टी कार्यक्रमों में दरी बिछाने,प्रचार करने और पोलिंग बूथ जैसे काम करने के बावजूद ‘इनाम’आयातित नेताओं को ही मिल रहा.असंतोष के सुरों को थामने और क्षेत्रीय संतुलन बनाने के लिए मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह ने हाल ही में गौरीशंकर बिसेन, राजेंद्र शुक्ल और उमा भारती के भतीजे राहुल सिंह लोधी को कैबिनेट में जगह दी है लेकिन यह कवायद कितनी कारगर होगी, वक्‍त ही बताएगा.

चुनाव पूर्व सर्वे जता रहे कड़े मुकाबले की संभावना
चुनाव पूर्व सर्वे भी बीजेपी के समक्ष चुनौती की गंभीरता बयां कर रहे. ये सर्वेक्षण बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होने की बात कह रहे. कुछ सर्वे 2018 के विधानसभा चुनाव की तरह कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के संकेत दे रहे. संभवत:इसी कारण पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का फोकस इस समय मध्‍य प्रदेश पर हैं.अगस्‍त में सागर जिले में संत रविदास के भव्‍य मंदिर और स्‍मारक का भूमि पूजन करने पहुंचे पीएम मोदी इस माह फिर एक कार्यक्रम में भाग लेने बीना पहुंचेंगे. राजनाथ सिंह और अमित शाह भी जन आशीर्वाद यात्रा को रवाना करने राज्‍य के विभिन्‍न स्‍थानों में पहुंच रहे हैं. बीजेपी की उम्‍मीद यही है कि सीएम शिवराज सिंह चौहान की हाल ही लोकलुभावन घोषणाओं और ‘मोदी मैजिक’ की बदौलत वह हालात अपने पक्ष में करने में सफल हो जाएगी.

2018 में कांग्रेस की बनी थी सरकार लेकिन..
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में किसी भी पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हुआ था. उस समय 114 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी जबकि बीजेपी 109 सीटों पर ठिठक गई थी.कांग्रेस ने जीत के बाद कमलनाथ की अगुवाई में सरकार बनाई थी लेकिन ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के बीजेपी ज्‍वॉइन करने के बाद उनके समर्थक विधायक भी इस ओर शिफ्ट हो गए थे और बीजेपी की सरकार बनने की मार्ग प्रशस्‍त हुआ था.

बीजेपी की राह में प्रमुख चुनौतियां

उमा भारती की नाराजगी: सीएम शिवराज के सामने सबसे बड़ी समस्‍या पूर्व सीएम उमा भारती की नाराजगी दूर करना है. राज्‍य के बुंदेलखंड क्षेत्र में खासा प्रभाव रखने वाली उमा जन आशीर्वाद यात्रा का न्‍यौता न मिलने से खफा हैं.उन्होंने कहा, ‘मुझे यात्रा में कहीं भी नहीं बुलाया गया. अब यदि मुझे निमंत्रण नहीं दिया तो भी मैं इसमें नहीं जाऊंगी. मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता लेकिन मन में यह सवाल जरूर आता है कि ज्‍योतिरादित्‍य ने अगर पार्टी की सरकार बनवाई तो मैंने भी तो उन्‍हें एक सरकार बनाकर दी थी.’ उन्‍होंने कहा-इन लोगो को शायद डर लगता है कि अगर मैं यात्रा में पहुंचूंगा तो लोगों का ध्‍यान मेरी तरफ हो जाएगा.

एंटी इनकमबेंसी फैक्‍टर: वर्ष 2018 में कमलनाथ के नेतृत्‍व वाली कांग्रेस सरकार के करीब डेढ़ साल माह के कार्यकाल को अपवाद स्‍वरूप छोड़ दें तो मध्‍य प्रदेश में बीजेपी दो दशक से सत्‍ता में है.2003 में कांग्रेस को हराकर बीजेपी ने उमा भारती की अगुवाई में सरकार बनाई थी. इसके बाद 2008 और 2013 के चुनाव में पार्टी ने सत्‍ता में वापसी की थी.कमलनाथ सरकार की बेदखली के बाद शिवराज सिंह ने 2020 में जब फिर सत्‍ता संभाली तो कांग्रेस समर्थकों की नाराजगी यही थी कि ‘जनबल’पर ‘धनबल’ भारी पड़ने के कारण उसके हाथ से सत्‍ता गई. शिवराज ने बेशक राज्‍य में ‘मामा’ के रूप में लोकप्रियता हासिल की है लेकिन लोगों को यह भी लगने लगा कि बीजेपी नेताओं में सत्‍ता का नशा चढ़ रहा है. पोषण आहार घोटाला मामले ने सरकार की छवि को प्रभावित किया है. विधानसभा में बीजेपी को कांग्रेस के साथ एंटी इनकमबेंसी फैक्‍टर (सत्‍ताविरोधी रुझान)का भी सामना करना है.

दलित-आदिवासियों पर जुल्‍म की घटनाएं, ब्राह्मण भी नाराज: राज्‍य में आदिवासियों और दलितों पर जुल्‍म के सामने आए मामलों ने शिवराज सरकार की छवि पर विपरीत असर डाला है.राज्‍य के इंदौर में आदिवासी समाज के दो युवाओं तथा शिवपुरी और छतरपुर जिले में दलित समाज के खिलाफ ऐसी घटनाएं सामने आई जिन पर कांग्रेस ने सरकार को घेरा. सीधी जिले में एक आदिवासी पर एक शख्‍स द्वारा पेशाब किए जाने की घटना की गूंज तो देशभर में रही. बाद में सीएम शिवराज सिंह ने इस आदिवासी को अपने घर बुलाकर उसके पैर धोए और माफी मांगी. माना जा रहा कि सीधी कांड के आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाए जाने की कार्रवाई से ब्राह्मण समाज भी सरकार से नाराज है. आरोपी का घर दोबारा बनवाने के लिए कुछ ब्राह्मण संगठनों ने चंदा भी जुटाया. विधानसभा चुनाव के पहले आदिवासी-दलित समाज के साथ ब्राह्मणों का विश्‍वास जीतने के लिए सरकार एड़ीचोटी का जोर लगा रही.

कई नेताओं का कांग्रेस में शामिल होना: चुनावी बेला में पिछले दो-तीन माह में बीजेपी के दो दर्जन से ज्‍यादा नेता निष्‍ठा बदलकर कांग्रेस में शामिल हुए हैं. इसमें ज्‍योतिरादित्‍य के खेमे के नेताओं के अलावा खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे खांटी बीजेपी नेता भी शामिल हैं. इन नेताओं में पूर्व सीएम कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी, कोलारस विधायक वीरेंद्र रघुवंशी, भंवर सिंह शेखावत, गिरिजाशंकर शर्मा, महेंद्र बागरी और आदिवासी नेता माखन सिंह सोलंकी प्रमुख हैं. हालांकि कांग्रेस से नाता तोड़कर कई नेता भी बीजेपी में आए हैं. चुनाव नतीजों से ही पता चल पाएगा कि नेताओं की यह ‘निष्‍ठा शिफ्टिंग’ बीजेपी को नुकसान पहुंचा पाती है या नहीं.