भोपाल। अब तक लगातार राजनैतिक किदवंती चल रही थी कि भाजपा चेहरा बदलकर चुनाव लड़ेगी। लेकिन अब इसकी संभावना कम ही नजर आती है, क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पूरे उत्साह के साथ मैदान में डटे है और अपनी लोकलुभावन योजनाओं को जनता को समर्पित कर रहे है। जल्द ही शिवराज सिंह लाड़ली बहनाओं के खाते में एक-एक हजार भी वन क्लिक में ट्रांसफर करेंगे। इससे साफ है कि भाजपा आलाकमान चेहरे पर निश्चिंत है और अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नेतृत्व में ही पार्टी चुनाव लड़ेगी। यह संभावना जरूर है कि भाजपा संगठन में बदलाव कर सकती है।
मध्यप्रदेश में भाजपा ने शिवराज सिंह की अगुवाई में ही साल के अंत में होने वाला चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। इसके संकेत अब मिलने लगे है, क्योंकि उनके जैसा लोकप्रिय और जनाधार का राजनेता कोई दूसरा नहीं है। भाजपा को पता है कि उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी ने तीन चुनावों में विक्टरी हासिल की थी। पहले चुनाव के वक्त तो केन्द्र में कांग्रेस की हुकूमत थी। भाजपा आलाकमान को यह मालूम है कि अगर चुनावों के समय अचानक सत्ता में बदलाव किया जाता है तो पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। नये चेहरे पर बात नहीं बनी तो बगाबत भी हो सकती है। अगर इसी नेतृत्व के साथ पार्टी चुनावों में जाती है तो काफी हद तक बगाबत को रोका जा सकता है। भाजपा आलाकमान कर्नाटक के रिजल्ट से वाकिफ है, क्योंकि वहां भी मुख्यमंत्री चुनावों से पहले बदला गया था और इसके परिणाम आम चुनावों में विपरीत देखने को मिले।
भाजपा अब मध्यप्रदेश को गुजरात तो नहीं समझेगी कि वहां सरकार का पूरी तरह चेहरा बदल दिया और परिणाम समर्थन में आ जाये। यह मध्यप्रदेश है यहां आवाम की आवाज चलती है। इसे वीरों की भूमि भी कहा जाता है। इसलिए चुनाव के ऐनवक्त पर अचानक सत्ता में बदलाव कर भाजपा को चुनावों में बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। इसलिए जो राजनैतिक सूत्र बताते है कि पार्टी इसी नेतृत्व के साथ चुनावों में जायेगी। मतलब शिवराज सिंह की कुर्सी अब सेफ है और वह ही चुनावों में भाजपा का चेहरा भी होंगे। हालांकि पार्टी एक नारा यह भी दे सकती है कि चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा जा रहा है। फिर भी मुख्यमंत्री तो शिवराज ही रहेंगे।खबरों की माने तो भाजपा में मुख्यमंत्री बनने के लिये रेस लगी है। ग्वालियर चंबल अंचल से ही एक नहीं तीन-तीन दावेदार है। वहीं मालवा अंचल से भी दावेदारी है। इसी प्रकार जबलपुर संभाग भी अब मुख्यमंत्री बनना चाह रहा है। इसी कशमकश और भंवर में भाजपा आलाकमान फंसा गया है। इसलिए उसका निष्कर्ष यही निकला कि शिवराज सिंह से बेहतर ओर कौन होगा? उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी ने तीन चुनावों में विजय फताका फहराई थी। पिछला चुनाव जरूर पार्टी मामूली अंतर से हार गई थी और कांग्रेस सत्ता में लौटी थी। हालांकि डेढ साल बाद आपरेशन लाटस ने फिर शिवराज को मुख्यमंत्री बना दिया। अब पार्टी उन्हीं के दम पर अगली चुनावी वैतरणी पार करने के लिये दंभ भर रही है। वहीं यह जरूर संभव है कि पार्टी प्रदेशाध्यक्ष बदल सकती है। वर्तमान अध्यक्ष व्ही.डी. शर्मा आलाकमान की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे है। पार्टी उन्हें केन्द्र में मंत्री बनाकर मध्यप्रदेश संगठन में नया अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है। संभावना यह भी है कि अध्यक्ष भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पसंद का हो सकता है। शिवराज सिंह एक बार फिर अपने पुराने जोडीदार को ही सरकार बनाने के लिये पुकार सकते है।