भोपल: मध्यप्रदेश में इसी साल नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने वाले है और इससे पहले ही राज्य के मुख्य सचिव को लेकर दंगल शुरू हो गया है. वर्तमान के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस एक्सटेंशन पर चल रहे है. कांग्रेस की कोशिश है कि राज्य के विधानसभा चुनाव बैंस की अगुवाई में न हों, यही कारण है कि पार्टी की ओर से कई तरह के आरोप लगाए गए है और कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाए जाने की बात कही जा चुकी है.
मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस 1985 बैच के आईएएस है, वे नवबंर 2022 को सेवानिवृत्त हो गए थे, मगर उन्हें पहले मई 2023 तक और फिर 30 नवंबर 2023 तक का एक्सटेंशन मिला हुआ है. इसके चलते संभावना इसी बात की जताई जा रही है कि चुनाव के वक्त बैंस ही मुख्य सचिव रह सकते हैं. बस इसी को लेकर कांग्रेस की चिंताएं बढ़ी हुई है.
कांग्रेस मानकर चल रही है कि बैंस की गिनती राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सबसे नजदीकी अफसरों में रही है और उन्हें एक्सटेंशन भी मुख्यमंत्री के प्रयासों के चलते दो-दो बार मिला है. राज्य में इसी साल विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित है और संभावना भी इस बात की जताई जा रही है कि 30 नवंबर से पहले ही मतदान की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और चुनाव प्रक्रिया जारी रहने अर्थात मतगणना और परिणाम शेष रहने की स्थिति में बैंस को कुछ समय का एक्सटेंशन और मिल सकता है.
इस बात से कांग्रेस चिंतित है, तो वहीं कई अधिकारी जो मुख्य सचिव बनने की कतार में लगे हैं, वे अपनी लॉबिंग कर रहे हैं. इसके चलते कांग्रेस लगातार आक्रामक हो रही है. जहां तक प्रशासनिक जमावट और चुनाव की बात करें, तो राज्य में लगातार प्रशासनिक सर्जरी का दौर जारी है, सरकार बड़े फैसले लेने के साथ बड़ी योजनाओं केा अमली जामा पहना रही है.
बैंस के एक्सटेंशन पूरा होने में दो माह बचे हैं, लेकिन वे उसी तरह सक्रिय हैं, जैसे नियुक्ति काल में रहे हैं और लगातार सरकारी बैठकें कर रहे हैं. याद करें नबंवर 2022 को तो रिटायर होने की सीमा से पहले ही उन्होने सामान समेटना शुरू कर दिया था. सीएम शिवराज भी चाहते हैं कि उनकी घोषणाओं और योजनाओं के परिणाम दिखाने के लिए बैंस ही सचिव बने रहें, लेकिन अगर मामला अदालत में गया तो सरकार की किरकिरी हो सकती है.
असल में मुख्य सचिव बनने के कई दावेदार दिख रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा जोर एसएन मिश्रा के नाम पर है, हालांकि कई शिकायतों के बाद मिश्रा को हाल ही में जल संसाधन विभाग के सचिव पद से हटा दिया गया था, लेकिन मिश्रा की नजदीकियां हमेशा से कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं के साथ रही हैं और यही कारण है कि उनका दावा मजबूत है. वहीं 1987 बैच के अजय तिर्की ,1988 बैच के संजय उपाध्याय और वीणा राणा, 1989 बैच के आशीष उपाध्याय, राजीव रंजन और मोहम्मद सुलेमान के नाम भी शामिल हैं.
सनद रहे कि प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने प्रदेश के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस को तत्काल प्रभाव से पद मुक्त किए जाने की मांग की है और इसके साथ ही उनकी जगह किसी अन्य अधिकारी को नियमित मुख्य सचिव के पद पर नियुक्त करने की मांग की है. इस मांग को लेकर गोविंद सिंह ने मुख्य चुनाव आयुक्त को चिट्ठी लिखी है.
नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने मुख्य चुनाव आयुक्त के नाम लिखे पत्र में एक अखबार में प्रकाशित खबर का संदर्भ लेकर बताया है कि नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल (एनजीटी) की बेंच द्वारा मध्य प्रदेश के सरकार के पूरे सिस्टम को ही अक्षम बताया गया है और मुख्य सचिव द्वारा बिना पढ़े शासन का पक्ष रखने पर पांच लाख रुपए की पेनाल्टी लगाई गई है. साथ ही सख्त टिप्पणी की है कि ‘ऐसे राज्य का भगवान ही मालिक है‘.
नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में कहा कि निर्वाचन आयोग निष्पक्षता से चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसे मुख्य सचिव को सेवानिवृत्ति के बाद प्रदेश सरकार की अनुकंपा पर छह-छह माह के लिए सेवा वृद्धि की गई है. क्या मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के रहते मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से संपन्न होंगे, यह यक्ष प्रश्न है?
उन्होंने लिखा, मैंने पहले भी इकबाल सिंह बैस की सेवा वृद्धि नहीं किए जाने के लिए आपको चिट्ठी लिखी थी. इसी तरह लोकायुक्त में भी बैंस के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है. साथ ही राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने भी कैग की रिपोर्ट के आधार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. तन्खा का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य के मुख्य सचिव के खिलाफ आजीविका मिशन में हुए 500 करोड़ के घोटाले की शिकायत लोकायुक्त में करनी पड़ी है.
सीएजी की रिपोर्ट में भी यह घोटाला किए जाने के आरोप लगे है. तन्खा का न्यायालय में जाने के सवाल पर कहना है कि इस मामले में जो कुछ भी करने की जरुरत होगी वह किया जाएगा मगर समय आने पर. यह मामला पहले भारत के लोकतंत्र और मप्र के लोकायुक्त की स्वतंत्रता की परीक्षा का है.
वहीं BJP के नेताओं का कहना है कि कांग्रेस सिर्फ आरोप लगाने में भरोसा करती है, यह प्रशासनिक प्रक्रिया है, किसे कितना और कब एक्सटेंशन दिया जाना है, यह तो नियमों के मुताबिक होता है, अगर प्रक्रिया और नियम का पालन नहीं किया गया तो बताएं. आरोप लगाकर मीडिया की सुर्खियां बनने से ज्यादा उसे कुछ आता नहीं.