अहमदाबाद. गुजरात के डिप्टी सीएम नितिन पटेल ने विवादित बयान दिया है. उनका कहा है कि संविधान, धर्मनिरपेक्षता और कानून की बात तबतक चलेगी जबतक हिंदू बहुसंख्यक हैं. उन्होंने आगे कहा कि मेरे शब्द लिख लीजिए, अगर हिन्दुओं की संख्या कम हुई तो उस दिन ना कोई कोर्ट कचहरी होगी, ना कोई कानून होगा, कोई लोकशाही नहीं, कोई संविधान नहीं रहेगा. सब हवा में दफना दिया जाएगा.
पटेल ने यह बयान गांधीनगर के भारत माता मंदिर में दिया. इस मंदिर को राज्य का पहला भारत माता मंदिर माना जाता है. जिस वक्त पटेल ने यह बयान दिया उस समय राज्य के गृह मंत्री प्रदीप सिंह जाडेजा और वीएचपी व आरएसएस के शीर्ष नेता मौजूद थे.
पटेल ने कहा कि “हमारे देश में कुछ लोग संविधान और धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं. लेकिन मैं आपको बताता हूं और अगर आप इसे वीडियो रिकॉर्ड करना चाहते हैं, तो इसे करें…मेरे शब्दों को लिखकर रख लें. संविधान, धर्मनिरपेक्षता और कानून आदि की बात करने वाले ऐसा तब तक करेंगे जब तक कि इस देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं…जिस दिन…हिंदुओं की संख्या घटती है, दूसरों की वृद्धि होती है, तब न धर्मनिरपेक्षता, न लोकसभा और न संविधान. सब कुछ हवा में उड़ा दिया जाएगा. कुछ नहीं रहेगा.”
उन्होंने आगे कहा कि ”मैं सभी के बारे में बात नहीं कर रहा. मुझे यह भी साफ कर देना चाहिए कि लाखों मुसलमान देशभक्त हैं, लाखों ईसाई देशभक्त हैं. गुजरात पुलिस में हजारों मुसलमान हैं, वे सभी देशभक्त हैं.
वैसे जनसंख्या विस्फोट को मुसलमानों की आबादी से जोड़कर राजनीति करने का पुराना इतिहास है. अक्सर ये दावा किया जाता है कि मुस्लिमों की आबादी हिंदुओं के मुकाबले बहुत तेजी से बढ़ रही है.
साल 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या 19,98,12,341 थी. जिसमें 15, 93,12,654 करोड़ हिंदू और 3, 84, 83,967 मुस्लिम थे.
साल 2001 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 80.61 फीसदी हिंदू थे और 18.50 फीसदी मुसलमान थे. लेकिन 2011 में हिंदुओं की आबादी घटकर 79.73% और मुस्लिमों की आबादी 19.26% हो गई. जनगणना विभाग कहना है कि उत्तर प्रदेश के 70 में से 57 जिलों में हिंदुओं की आबादी मुस्लिमों के मुकाबले धीमी गति से बढ़ रही है. 2011 की जनगणना कहती है कि मुजफ्फरनगर में जहां हिंदू 3.20% घट गए तो मुस्लिम आबादी में 3.22% का इजाफा हो गया.
कैराना, बिजनौर, रामपुर और मुरादाबाद उत्तर प्रदेश के ये वो जिले हैं. जहां पर ऐसा ही ट्रेड देखने को मिला. लेकिन सवाल ये है क्या वाकई में पूरे देश में सिर्फ हिंदुओं की आबादी घट रही है.
साल 2005-06 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 3 में हिंदुओं की प्रजनन दर 2.59% थी. जो 2015-16 में 0.46% की गिरावट के साथ 2.13% हो गई. इस दौरान मुस्लिमों की प्रजनन दर में सबसे ज्यादा 0.79% की कमी देखी गई. वहीं ईसाइयों में साल 2005-06 से 2015-16 के बीच प्रजनन दर 0.35% गिर गई. सिखों की प्रजनन दर में गिरावट 0.37 फीसदी रही. तो आंकड़े बता रहे हैं कि देश में प्रजनन दर हर धर्म के लोगों के बीच घट रही है.
इसीलिए चुनाव से ऐन पहले यूपी राज्य विधि आयोग के इस कदम को विपक्ष सौ फीसदी राजनीतिक बता रहा है. उसका दावा है कि ये सारी कोशिश कोरोना की दूसरी लहर में जनता की हुई बेकदरी की याद को मिटाने के लिए की जा रही है.
सवाल ये है कि क्या लोगों को सरकारी योजनाओं से वंचित करके ही जनसंख्या नियंत्रण की जा सकती है. क्या इससे बेहतर ये नहीं होता कि उत्तर प्रदेश सरकार लोगों को जागरुक करने की कोशिश करती. जैसा विकसित देशों में किया गया. जहां शिक्षा और संपन्नता के संग जनसंख्या नियंत्रण की जागरुकता का भी प्रसार होता गया और बिना कानून और दंड के ही जनसंख्या नियंत्रण के लक्ष्य को पूरा कर लिया गया. सवाल ये है कि उत्तर प्रदेश में इस विकल्प को क्यों नहीं आजमाया गया ?