ग्वालियर . इस संसार को कर्म चला रहे है. सबकी अपनी कर्म व्यवस्था है और अपना-अपना खाता है. कोई किसी के कर्म में कुछ नहीं करता है. यह ऑटोमेटिक व्यवस्था है. कर्म का बंध होना, कर्म का उदय आना, सत्ता में रहना ये सब स्वयं ही होता होता है, जीवन तो केवल भाव बनाता है. जैसे भाव होते है वैसे उस तरह का कर्म बंध होगा.
यह विचार गणिनी आर्यिका स्वस्तिभूषण माताजी ने बुधवार को नई सडक़ स्थित चंपाबाग धर्मशाला में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही. मंच पर गणिनी आर्यिका लक्ष्मीभूषण माताजी विराजमान रहीं.
आर्यिका ने कहा कि व्यक्ति को धर्म करने के लिए पुण्य चाहिए. धर्म हर व्यक्ति नहीं कर सकता. साधु संतों के मंगल प्रवचन हर व्यक्ति नहीं सुना सकता. पुण्य के कार्य पुण्य के साथ होते हैं. उन्होंने कहा कि दुनिया को चलाने वाले कर्म हंै. यदि कोई संसार में सुखी या दु:खी है तो वो कर्म के कारण है. उन्होंने कहा कि दुनिया में सुखी रहना है तो धर्म को अपनाना पड़ेगा.
प्रवचन से पहले भगवान महावीर स्वामी के चित्र का आवरण अनिल शाह और पंडित चंद्रप्रकाश जैन ने किया. गणिनी आर्यिका लक्ष्मीभूषण माताजी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य अपने जीवन में हर क्षण कर्म करता रहता है. कर्म अच्छे या बुरे दो प्रकार के होते हैं. भले कर्म पुण्य तथा बुरे पाप कहलाते हैं. जब इंसान अच्छे कर्म करता है तो पुण्य कर्मों का बंध होता है, लेकिन जब बुरे कर्म करता है तो पाप का बंध होता है.