ग्वालियर। त्याग करते-करते जब मानव आगे कदम बढ़ाता है, तो उसके जीवन में अकिंचन धर्म स्वयं प्रकट हो जाता है। मनुष्य जब सब कुछ त्याग कर देगा और उसके पास कुछ भी परिग्रह नहीं होगा तो वहीं अकिंचन धर्म होगा। उक्त उद्गार पर्युषण पर्व के नाैवें दिन उत्तम अकिंचन धर्म पर आचार्यश्री यतींद्र सागर महाराज ने मामा का बाजार स्थित ऋषभ धर्मशाल में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
आचार्यश्री ने कहा कि परिग्रह का अर्थ चारों ओर से ग्रहण करना, संचय करना, क्रोध, मान, माया लोभ, झूठ ,चोरी हिंसा, कुशल की भावनाओं में होता है। इसलिए मनुष्य न्याय और अन्याय का ध्यान किए बिना पदार्थों का संचय करता है, जो उसके दुख का कारण बनता है। जीव मिथ्या और सोच के कारण सभी पर्याय को अपना वास्तविक स्वरूप समझता रहा है। राग, द्वेष, मोह, क्रोध, पंच इंद्रियों, जो उसका वास्तविक स्वरूप नहीं थे, उनको अपना मानकर घोर पाप करता रहा है। अकिंचन धर्म में यह सब विकार भाव स्वयं छूट जाते हैं।
भक्तामर विधान में आचार्यश्री ने महा अर्घ्य समर्पित कराएः मामा का बाजार स्थित ऋषभ धर्मशाला में आचार्यश्री यतींद्र सागर महाराज के मंगल सानिध्य में श्री भक्तांबर विधान का आयोजन किया गया। विधान में आचार्यश्री के सानिध्य में दीप प्रज्वलित रामचरण जी ने किया। आचार्यश्री ने मंत्रो के साथ मनोज जैन अमरोल, श्रीकृष्ण जैन नेताजी, विमल कुमार जैन, मनीष जैन भिंड, अशोक कुमार जैन, भानु कुमार जैन, भरोसी लाल जैन, सुरेश चंद जैन अरोरा वाले, सुरेशचंद जैन पूर्व सीएमओ, चंद्र प्रकाश जैन थाटीपुर सहित महानुभावों ने संगीतमय भगवान जिनेंद्र के समक्ष भक्ति भाव के साथ अर्घ्य चढ़ाकर पूजा-अर्चना की।