लखनऊ । गरीबों की गाढ़ी कमाई का थोड़ा अंश लेकर पैराबैंकिंग का अरबों रुपये का साम्राज्य स्थापित करने वाले सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय की मृत्यु के बाद निवेशकों के मन में सवाल उठने लगा है कि आखिर उनकी जमापूंजी वापस कैसे मिलेगी। सहारा समूह से अपनी गाढ़ी कमाई मिलने की उम्मीद खो चुके निवेशकों को अब सरकार से न्याय मिलने की आस है। इसकी वजह सहारा-सेबी विवाद के बाद जमा कराई गयी 14 हजार करोड़ रुपये की रकम है।
सहारा समूह के देनदारियों में केवल निवेशक ही नहीं, हजारों एजेंट का कमीशन और लाखों कर्मचारियों की लंबित तनख्वाह और अन्य देय भी शामिल है। केंद्र सरकार ने हाल ही में सहारा के निवेशकों की रकम को वापस करने के लिए सहारा रिफंड पोर्टल की शुरुआत की थी। इसके जरिए आवेदन करने वाले निवेशकों को दस हजार रुपये का भुगतान होना था। हालांकि इस फेहरिस्त में अभी ऐसे निवेशकों को जगह नहीं मिली है, जिनके लाखों रुपये सहारा में जमा हैं।
इन हालात में उम्मीद जताई जा रही है कि केंद्र सरकार सहारा समूह के निवेशकों की रकम को वापस करने की कवायद को तेज कर सकती है। इसके अलावा सहारा समूह की देश के कई प्रमुख शहरों में बेशकीमती संपत्तियां भी हैं। हालांकि इन संपत्तियों को बेचने पर प्रतिबंध है। कोर्ट की अनुमति से होने वाली बिक्री पर मिलने वाली रकम को सहारा-सेबी खाते में जमा कराने का आदेश अदालत दे चुकी है।
बताते चलें कि सहारा समूह ने तीन वर्ष पहले दावा किया था कि उसकी 22 हजार करोड़ रुपये की धनराशि सहारा-सेबी खाते में जमा है। सेबी के तमाम प्रयासों के बावजूद निवेशक नहीं मिलने से यह रकम उसे वापस मिल सकती है। इसके अलावा समूह देश भर में अपनी दो लाख करोड़ रुपये कीमत की संपत्तियां होने का दावा भी करता रहा है।
ओपी श्रीवास्तव को सौंपी जिम्मेदारी
सहारा प्रमुख के निधन के बाद उनकी पत्नी स्पप्ना राय उनकी विरासत को संभाल सकती हैं, हालांकि बीती सात नवंबर को सुब्रत राय की ओर से जारी एक पत्र में सहारा समूह में उप प्रबंध कार्यकर्ता ओपी श्रीवास्तव को अधिकतर प्रशासनिक कार्यों से जुड़े फैसले लेने की जिम्मेदारी सौंपी थी। ओपी श्रीवास्तव को उनके सबसे भरोसेमंद लोगों में शुमार किया जाता है। उन्होंने भी सहारा पर तमाम मुसीबतें आने के बावजूद सुब्रत राय का साथ नहीं छोड़ा था। इसके अलावा उनके भाई जयब्रत राय, दोनों बेटे और बहुएं भी सहारा समूह में अहम पदों पर रह चुके हैं।