चीनी हुक्मरान एक तरफ भारत के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों की वकालत करते हैं, तो दूसरी तरफ वो धमकी भी देते हैं। ‘वन बेल्ट, वन रोड’ के जरिए दुनिया में चीन अपने दबदबे को और मजबूत करने की फिराक में है। लेकिन भारत की कामयाबी उसे पसंद नहीं आती। एक तरफ चीन क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को स्थापित करने की कोशिश करता है, तो उसे ये बात नागवार लगती है कि भारत ठीक उसके नक्शेकदम पर चलने की कोशिश क्यों कर रहा है। हाल ही में चीन ने डोकलाम के मुद्दे पर भारत से लड़ाई करने की धमकी तक दी। लेकिन भारत ने चीन को स्पष्ट संदेशा दिया कि वो डरने वाला नहीं है। इन सबके बीच चीन की धार को कुंद करने के लिए भारत ने भी अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को एक नई ऊंचाई पर ले जाने का फैसला किया है। चीन के खिलाफ भारत के इस हथियार का नाम है सासेक(SASEC) ।
सासेक परियोजना
भारत ने कई वर्ष पहले भूटान, नेपाल, बांग्लादेश व म्यांमार को जोड़ने के लिए सासेक (साउथ एशियन सब रिजनल इकोनॉमिक को-ऑपरेशन) कॉरिडोर शुरू किया था। इसके तहत मणिपुर के इम्फाल-मोरेह (म्यांमार) को जोड़ने की सड़क परियोजना को 1630.29 करोड़ रुपये और दिए गए हैं। इस मार्ग को पूर्वी एशियाई बाजार के लिए भारत का प्रवेश द्वार माना जाता है। भारत की योजना इस मार्ग के जरिये न सिर्फ पूर्वी एशियाई बाजारों को पूर्वोत्तर राज्यों को जोड़ने की है, बल्कि वह यह भी दिखाना चाहता है कि क्षेत्रीय कनेक्टिविटी की अवधारणा को वह स्वीकारता है। इंफाल-मोरेह मार्ग के निर्माण के साथ ही बैंकाक तक पहुंचने के लिए भारत को एक वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो जाएगा। सासेक देशों के बीच बेहतर संपर्क मार्गों से न केवल पड़ोसी देश मजबूत होंगे, बल्कि भारत भी विकास के रास्ते पर और तेजी से आगे बढ़ सकेगा।
बांग्लादेश से बढ़ेगी करीबी
कैबिनेट ने बांग्लादेश के साथ पहले से ही मजबूत हो रहे रिश्ते को और गहराई देने के लिए दो अहम फैसले किए हैं। एक फैसला बांग्लादेश के साथ निवेश बढ़ाने संबंधी समझौते को आसानी से लागू करने के लिए समग्र नोट्स को मंजूरी देने से जुड़ा हुआ है। इसे ज्वाइंट्स इंटरप्रेटिव नोट्स कहा गया है, जो आने वाले दिनों में दोनो देशों के बीच आर्थिक संबंधों को और मजबूत करेगा। बांग्लादेश में भारी भरकम निवेश करने की तैयारी में बैठी भारतीय कंपनियों को भरोसा हो सकेगा कि उनका निवेश सुरक्षित है। कैबिनेट ने साइबर हमले के मामले में रणनीतिक सहयोग बढ़ाने संबंधी प्रस्ताव को भी मंजूरी दी है। हाल के वर्षों में बांग्लादेश भारत के सबसे विश्वस्त पड़ोसी देश के रूप में स्थापित हुआ है। ऐसे में भारत की तरफ से उसे हरसंभव मदद देने की भी कोशिश हो रही है। लेकिन ये भी जानना जरूरी है कि ‘वन बेल्ट, वन रोड’ क्या है।
सासेक का इतिहास
रोड कनेक्टिविटी और व्यापार की दृष्टि से दक्षिण एशिया के देश दुनिया में सबसे ज्यादा पीछे हैं। 2010 के आंकड़ों के मुताबिक इन देशों के बीच क्षेत्रीय व्यापार महज 4.3 फीसद है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये है कि इन देशों के बीच परिवहन सुविधा की कमी के साथ-साथ ये देश पूर्वधारणाओं पर एक दूसरे से संबंध स्थापित करने में परहेज करते रहे हैं। आपसी तालमेल की कमी की वजह से पड़ोसी मुल्क होते हुए भी ये देश हमेशा एक-दूसरे से दूर रहे। 21वीं सदी की शुरुआत में इस बात की जरूरत महसूस की गई कि वैश्विक पटल पर अपनी पहचान बनाने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग जरूरी है।
सार्क देशों में शामिल बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल ने 1996 में साउथ एशियन ग्रोथ क्वाड्रएंगल(SAGQ) की स्थापना की। इसका मकसद पर्यावरण, ऊर्जा, व्यापार को बढ़ावा देना था। सार्क ने एसएजीक्यू को 1997 में औपचारिक मान्यता दे दी। एसएजीक्यू में शामिल चारों देशों ने मनीला स्थित एशियन डेवलपमेंट बैंक से क्षेत्रीय स्तर पर आर्थिक मजबूती के लिए मदद की अपील की। चार साल बाद 2001 में सासेक का गठन हुआ। 2014 में मालदीव और श्रीलंका को सदस्य बनाया गया। इसके बाद 2017 में म्यांमार सासेक का सदस्य बना।
सासेक की प्राथमिकता
ऊर्जा के क्षेत्र में दक्षिण एशियाई देशों में काफी संभावनाएं हैं, लेकिन आपसी तालमेल की कमी की वजह से इन देशों के ज्यादातर इलाके अंधेरे में रहते हैं। संसाधनों की उपलब्धता के मद्देनजर जहां भारत में कोयले का विशाल भंडार है, वहीं गैस के मामले में बांग्लादेश, हाइड्रोपावर के मामले में भूटान और नेपाल संपन्न हैं। सासेक के देश यातायात, व्यापार सहयोग, ऊर्जा और इकॉनमिक कॉरिडोर डेवलपमेंट के जरिए विश्वपटल पर एक शक्तिशाली क्षेत्रीय संगठन के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकते हैं।