नई दिल्ली। केरल हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि किसी भी अविवाहित बेटी को अपने पिता से उचित विवाह खर्च पाने का अधिकार है। भले ही वह किसी भी धर्म से ताल्लुक रखती हो। जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजित कुमार की खंडपीठ ने कहा कि इस अधिकार को किसी भी धर्म की मान्यता की आड़ में खत्म नहीं किया जा सकता है।

दो जजों की खंचपीठ ने कहा, “एक अविवाहित बेटी का अपने पिता से विवाह संबंधी उचित खर्च पाने का अधिकार, धार्मिक अड़चनों के आड़े नहीं आ सकता। यह हर अविवाहित बेटी का अधिकार है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो। किसी भी धर्म के आधार पर इस तरह के अधिकार में भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं किया जा सकता है।” खंडपीठ ने एक पिता के खिलाफ दो अविवाहित बेटियों की याचिका पर ये फैसला सुनाया है। याचिका दायर करने वाली दोनों बेटियों ने अपनी शादी के खर्च के लिए 45.92 लाख रुपये की राशि की डिक्री जारी करने और अपने पिता की संपत्ति पर डिक्री की मांग करते हुए एक पारिवारिक अदालत का रुख किया था।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों बेटियों ने अपनी अर्जी में अपने पिता को उस संपत्ति को अलग करने से रोकने के लिए एक अस्थायी निषेधाज्ञा भी मांगी, जिसका उन्होंने दावा किया था कि उनकी मां और उनके परिवार की वित्तीय मदद से वह संपत्ति खरीदी गई थी।

पारिवारिक अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता शादी के लिए केवल न्यूनतम आवश्यक खर्चों का दावा करने की हकदार हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि ₹7.5 लाख की राशि की कुर्की बेटियों के हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त होगी। दोनों लड़कियों ने कोर्ट को बताया कि दोनों उच्च अध्ययन कर रही हैं और उनके पिता ने उसके लिए किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं की है।

पिता ने हाई कोर्ट में दावा किया था कि उनकी बेटियाँ और उनकी मां पेंटाकोस्ट ईसाई हैं और यह समुदाय गहनों के उपयोग में विश्वास नहीं करता है। इसलिए, आमतौर पर शादियों के लिए सोने के गहनों का खर्च उनकी बेटियों के मामले में सटीक नहीं बैठता है। इस पर कोर्ट ने बिना धार्मिक भेदभाव के अविवाहित बेटियों को उचित विवाह खर्च पाने का हकदार माना।